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भक्तामर यंत्र - ३०
Bhaktamara Yantra - 30
कुन्दावदातचलचामरचारुशोभ
स्वाहा' ही अहम
भय रक्षाकुरूकुर स्वी
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स्तम्भय स्तम्भ
सो घारगुणाण।"
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मुच्चैस्तटं सुरगिरेरिव शातकौम्भम् ॥३०॥
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अक्षुद्रान् स्त
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विभ्राजते तव वपुः कलधौतकान्तम्।
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ऋद्धि-ॐ ह्रीँ अहं णमो घोरगुणाणं ।
मंत्र-ॐ ह्रीँ श्रीँ श्रीपार्श्वनाथाय हाँ धरणेन्द्र पद्मावति सहिताय अट्टे मट्टे
क्षुद्रविघट्टे क्षुद्रान् स्तम्भय स्तम्भय रक्षां कुरु कुरु स्वाहा । प्रभाव-शत्रू का स्तम्भन होता है; एवं यात्रा निर्विघ्न संपन्न होती है ।
Removing obstacles and halting enemies.
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