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भक्तामर यंत्र - १८
Bhaktamara Yantra - 18
नित्योदयं दलितमोहमहान्धकारं
र्न नमो शास्त्रज्ञान नहीं ACT
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विद्योतयज्जगदपूर्वशशाङ्कबिम्बम् ॥१८॥
रक्ष रक्ष विध्वंसनाय क्लीं ह्रीं नमः।
परमऋद्धिप्राप्तजयंकराय ह्रीं ह्रीं ह्रीं श्रीं नमः । गम्य न राहुवदनस्य न वारिदानाम्।
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स्तम्भय स्तम्भय 75 स्वाहा kkk blloberano pelukt LL £ Lumbinirenali ehel
__ ऋद्धि-ॐ ह्रीँ अर्ह णमो विउव्वणइड्ढीपत्ताणं । मंत्र-ॐ नमो भगवति जये विजये मोहय मोहय स्तम्भय स्तम्भय स्वाहा । प्रभाव-शत्रुसैन्य साम्भित होता है, धर्म में मति स्थैर्य होता है तथा हरदम उत्सव-होते रहते है । Halting the enemy, stabilising faith in religion and
promoting auspicious ceremonies.
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