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भक्तामर यंत्र - १६
Bhaktamara Yantra - 16
निर्धूमवर्तिरपवर्जिततैलपूरः न ही अर्ह णमो चउदसपुवीणं।'
ने ही जयायै नमः
दीपोऽ परस्त्वमसि नाथा जगत्प्रकाशः ॥१६॥
कुरु कुरु स्वाहा। नै ग्लौं माणिभद्राय नमः
गम्ल्यूं
द
ने श्री विजयायै नमः नॆ नमः सुमंगला–सुसीमा नाम देवी कृत्स्नं जगतत्रयमिदं प्रकटीकरोषि।
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ऋद्धि-ॐ ह्रीँ अर्ह णमो चउदसपुव्वीणं । मंत्र-ॐ नमः सुमंगला-सुसीमा-नाम-देवी सर्वसमीहितार्थं वज्रशृङ्खला कुरु कुरु स्वाहा । . प्रभाव-सब तरह की सफलताएँ तथा प्रतिपक्षी पर विजय प्राप्त होती है ।
Winning over rivals and
securing success.
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