________________
भक्तामर यंत्र - १५
115611
किं मन्दराद्रिशिखरं चलितं कदाचित् ?
114
Jain Education International 2010_04
चित्रं किमत्र यदि ते त्रिदशाङ्गनाभि नमो
मानसी स्वाह अहँ णमो द
नमः।
1पृथ्वी- व्रण श्रृखला - मानसी म
6
—
Bhaktamara Yantra - 15
145
अचिन्त्यबलप
नतं मनागपि मनो न विकारमार्गम् ।
पराक्रमाय
दसपुव्वानमा भगवती
क्रैं
ऋद्धि-ॐ ह्रीँ अर्हं णमो दसव्वीणं ।
मंत्र - ॐ नमो भगवती गुणवती सुसीमा पृथ्वी वज्रशृङ्खला मानसी महामानसी स्वाहा ।
प्रभाव-प्रतिष्ठा और सौभाग्य में वृद्धि होती है; निर्मल ब्रह्मचर्य पालन की शक्ति मिलती है ।
Strengthening chastity and
increasing prestige and prosperity.
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org