SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 20
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विवरणमेयं रइयं दोसयवासेसु विक्कमओ ॥ २ ॥' आप्रमाणे हिमवंतस्थविरावलीमां जणाव्युं छे । आमाथी आ एक बात तो नक्की थाय छे के उमाखातिम० ना तत्त्वार्थ ऊपर गन्धहस्ती आचार्य महान् भाष्य रच्यु छ अने ए गन्धहस्तीम० वि. सं २०० मा विद्यमान हता। एटले तत्त्वार्थसूत्रना सूत्रयिता वि. सं २०० थी पूर्ववर्ती छ। केटलाको उमास्वाति म० ने यापनीयसंघना कहेवा ललचाय छे पण यापनीयसंघ वि. सं. २०५ मां नीकल्यो छ। एम दिगंबर आचार्य देवसेन कहेछ। ज्यारे उमाखाति म० नो सत्तासमय विक्रमथी पूर्वनो सिद्ध थाय छे । नियुक्ति अने आगमो नियुक्तिना कर्ता चतुर्दशपूर्वधर आ० भद्रबाहुखामी म० छ । प्राचीन आचार्य भगवंतो नियुक्तिनी रचना वी० सं १७० मा थई छ एम माने छ । न्यायावतारनी प्रस्तावना पृ० १०३ मां नियुक्तियाँ अपने मौजूदारूपमें सिद्धसेन के बादकी कृतियाँ है । अत एव सिद्धसेनपूर्ववर्तीसाहित्यमें स्थान नहीं। भाष्य और चूर्णियां तो सिद्धसेन के बाद की है ही' सिद्धसेनदिवाकरसूरिने आजना इतिहासकारो चोथी या पांचमी सदीना माने छे अने ते द्वारा नियुक्तिनी रचना चोथी-पांचमी सदीथी पाछळनी सिद्ध करवानो प्रयत्न करी रह्या छ । बृहत्कल्पमा छट्ठाभागनी प्रस्तावनामां नियुक्तिओनी रचना विक्रमना बीजा सैका पूर्वनी छे आ प्रमाणे जणाव्युं छे। एटले हवे इतिहासवेदिओ नियुक्तिनी रचना बीजा सैकाथी पूर्वनी छे त्यां सुधी तो आव्या छ। आम नियुक्तिना निर्माणसमयमां मतमेद प्रवर्ने छ । प्रस्तुत नयचक्रमा नियुक्तिओनी गाथाओ गृहीत थयेली छे । एटले विक्रमनी पांचमी सदीथी पूर्वनी नियुक्तिओनी रचना छे एमां शंकाने स्थान नथी। नियुक्तिनी जेम आ आचार्यश्रीए नंदिसूत्रनो पण पाठ लीधो छ । अने ते नंदिना मूळमां नियुक्तिनी घणी गाथाओ मूलकार देववाचकगणीम० लीघेली छे. एटले नन्दिनी रचनाधी पण पूर्वनी नियुक्तिओ छ। केटलाक इतिहासकारो देववाचकगणिने देवर्द्धिगणिक्षमाश्रमण मानीने नन्दिनो रचनाकाळ वि० सं ९८० नो नक्की करे छे, पण ते ठीक नथी। देवर्द्धिगणिना गुरु देशीगणी छे, ज्यारे देववाचकगणीना गुरु दूष्यगणी छे । केटलाक प्राचीनग्रन्थोमां देववाचकगणीने देवर्द्धिगणिक्षमाश्रमण लख्या छे पण ते तो कल्पसूत्रनी स्थविरावलीमां देववाचकने देवर्द्धिगणी कह्या छे ते नामान्तर छ । आमनाथी आगमोने पुस्तकारूढ करावनार देवर्द्धिगणीक्षमाश्रमण जुदा छे आ वात कल्पसूत्रनी स्थविरावली जोतां मालूम पडशे । ए स्थविरावलीमां देवर्द्धिगणिक्षमाश्रमण- नाम बे वखत आव्युं छे । एटले देववाचकगणीनुं बीजुं नाम आ पण होवू जोइए ! कल्पसूत्रनी एक स्थविरावेलीमां भिन्न भिन्न गोत्रीय देवर्द्धिगणिक्षमाश्रमण अने देवर्द्धिक्षमाश्रमण आम बे नाम आवे छे। एटले देववाचकगणिनुं बीजुं नाम देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण होवू जोइए ! आथी ज केटलाक पूर्वाचार्योए देववाचकजीने देवर्द्धिगणी लख्या छ। पण आगम लखावनार देवर्द्धिगणिक्षमाश्रमणजीने नहीं । पू० मलयगिरिमहाराजे नन्दिनी टीकामां देववाचकजीनो स्पष्ट उल्लेख करेलो छ । १ जो न्यायावतारनी प्रस्तावना मुजब नियुक्तिओ सिद्धसेनसूरि म० थी पाछळनी कृतिओ छे तो बृहत्कल्पना छट्टा भागनी प्रस्तावना प्रमाणे विक्रमनी बीजी सदीथी पूर्वना दिवाकर म० तेओना ज लखाणथी सिद्ध थई जाय छ। २'तत्तो य थिरचित्तं उत्तमसम्मत्तसत्तसंजुत्तं । देवङ्किगणिखमासमणं माढरगुत्तं नमसामि ॥ ११॥ देवडिखमासमणे कासवगुत्ते पणिवयामि ॥१४॥ Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002587
Book TitleDvadasharnaychakram Part 4
Original Sutra AuthorMallavadi Kshamashraman
AuthorLabdhisuri
PublisherChandulal Jamnadas Shah
Publication Year1960
Total Pages364
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy