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ध्वस्तोलकेश-विकृताकृति-मर्त्यमुण्डप्रालम्बभृद्-भयद-वक्त्रविनिर्यदग्निः। प्रेतव्रजः प्रतिभवन्तमपीरितो यः,
सोऽस्याऽभवत् प्रतिभवं भवदुःखहेतुः।।३३।। हे जिनेन्द्र ! उस दुष्ट कमठ ने आपको ध्यानभ्रष्ट करने के लिये अत्यन्त निर्दय पिशाचों के दल भी भेजे। वे कैसे थे-जिनके गले में नर मुण्डों की मालाएँ पड़ी हुई थीं और जो अपने भयानक मुख से आग निकाल रहे थे। वे आपका कुछ भी नहीं बिगाड़ सके, प्रत्युत वे उसी कमठ के लिये अनेक भवों में भयंकर दु:खों के कारण बन गये।
હે જિનેન્દ્ર ! એ દુષ્ટ કમઠે આપનું ધ્યાનભ્રષ્ટ કરવા માટે અત્યંત નિર્દય પિશાચોનાં દળ પણ મોકલ્યાં. તે કેવાં હતાં - જેમના ગળામાં નર મુંડોની માળાઓ પડેલી હતી અને જે પોતાના ભયાનક મુખમાંથી આગ ઝરતા હતાં. તે આપનું કાંઈ ન બગાડી શક્યા, પણ તે કમઠ માટે જ અનેક ભવમાં ભયંકર દુ:ખોનું કારણ બની ગયાં.
O Jinendra ! The evil Kamath also sent cruel pishachas (demonlike lower gods) with horrifying appearance and adorned with garlands of skulls in order to disturb your pious meditation. But even those fire emitting pishachas could do no harm to you. This despicable deed too turned into the cause of terrible torments for him in many future rebirth.
चित्र-परिचय
उस कमठासुर ने प्रभु को मारने के लिये भयंकर आकृति वाले गले में नरमुण्ड लटकाये, मुँह से आग उगलते पिशाचों को भेजा । वे भी ध्यान मग्न प्रभु का बाल भी बांका नही कर सके । इस कृत्य के प्रतिफल स्वरूप कमठ को कई भवों तक नर्क के भयंकर कष्ट सहने पड़े।
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