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मुच्यन्त एव मनुजाः सहसा जिनेन्द्र ! रौद्रैरुपद्रवशतैस् त्वयि वीक्षितेऽपि। गो-स्वामिनि स्फुरिततेजसि दृष्टमात्रे,
चौरैरिवाशु पशवः प्रपलायमानैः।।६।। हे जिनेन्द्र ! आपके दर्शनमात्र से भक्तजन सैकड़ों भयंकर उपद्रवों से शीघ्र ही मुक्त हो जाते हैं। जैसे गाँव के पशुओं को चोर चुराकर ले जाते हैं, किन्तु ज्यों ही बलवान तेजस्वी ग्वाला दिखाई देता है, त्यों ही पशुओं को छोड़कर वे चोर झटपट भाग खड़े होते हैं। मालिक के सामने कहीं चोर ठहर सकते हैं? कदापि नहीं। | હે જિનેન્દ્ર ! આપના દર્શન માત્રથી ભક્તજન સેંકડો ભયંકર ઉપદ્રવોથી શીઘ્ર મુક્ત થઈ જાય છે. ગામના પશુઓને ચોર ચોરી કરીને લઈ જાય છે, પરંતુ જેવો બળવાન, તેજસ્વી ગોવાળ દેખાય છે, કે તરત જ તે ચોર પશુઓને છોડીને ઝટપટ ભાગી જાય છે. માલિકની સામે શું ચોર ઊભો રહી श? ध्यारेय नही.
O Jinendra ! The pious beholding of your image at once makes your devotees free of hundreds of terrible torments. Thieves steal cattle from a village but on seeing the strong and alert cowherd they elope in a hurry abandoning the cattle. Can thieves dare face the owner of the cattle ? No chance!
| चित्र-परिचय
प्रभु पार्श्वनाथ के दर्शन करते भक्तजनों के हृदय से भय, रोग, शोक, उपद्रव आदि भाग जाते हैं।
जैसे मालिक को देखते ही पशु चोर, झटपट भागने लगता है।
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