________________
29-3
Solid
आस्तामचिन्त्यमहिमा जिन ! संस्तवस्ते, नामाऽपि पाति भवतो भवतो जगन्ति। तीव्रातपोपहत - पान्थ - जनान्निदाघे,
प्रीणाति पद्मसरसः सरसोऽनिलोऽपि।।७।। जिस प्रकार ग्रीष्म काल में आतप से सताये हुए पुरुषों को कमलयुक्त सरोवर ही शान्ति देने वाले नहीं होते, अपितु उनका शीतल पवन भी सुखप्रद होता है। उसी प्रकार हे भगवन् ! आपका स्तवन ही प्रभावशाली नहीं है अपितु आपका नाम भी संसार के दुःखों से बचाता है।
- જે પ્રકારે ગ્રીષ્મના તાપથી હેરાન પુરુષને કમળયુક્ત સરોવર જ શાંતિ દેનાર નથી હોતા, પરંતુ તેમની શીતળ હવા પણ સુખપ્રદ હોય છે. તેજ પ્રકારે હે ભગવાન! આપના સ્તવન જ પ્રભાવશાળી નથી પરંતુ આપનું નામ પણ संसारनामोथी जयावे छे.
In summer it is not just a lotus-pond that gives relief to people tormented by sun, even the cool wind blowing from it provides comfort to them. In the same way, O Bhagavan! It is not just your panegyric that is unimaginably miraculous, even chanting of your name has so much power that it protects one from the miseries of this world.
चित्र-परिचय
जिनेश्वर देव की प्रतिमा के सामने स्तवन से स्तुति करते हुए भक्त के हृदय से संसारिक दुःख, रोग, शोक, डर आदि दूर हो जाते हैं और उसे असीम शान्ति का अनुभव हो रहा है।
जैसे सूर्य के तीव्र प्रकाश से सताये मनुष्य को कमलयुक्त सरोवर से उठते शीतल पवन के झोंके शान्ति प्रदान करते हैं।
Jain Education International 2010_03
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org