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२०६ वृद्ध कुमारिकाएँ
भगवान पार्श्वनाथ के शासनकाल की एक विशिष्ट उल्लेखनीय घटना का वर्णन जैन सूत्रों में मिलता है, जिसका उल्लेख बहुत कम लोगों ने किया है। वह है, उनके शासन में २०६ वृद्ध कुमारिकाओं की दीक्षा। भिन्न-भिन्न नगरों की रहने वाली, जीवनभर अविवाहित रहकर वृद्धावस्था प्राप्त होने पर अनेक श्रेष्ठी - कन्याओं ने समय-समय पर भगवान पार्श्वनाथ के शासन में दीक्षा ली और तप-संयम की आराधना की। परन्तु उत्तर गुणों में कुछ दोष लगने के कारण उसकी आलोचना विशुद्धि किये बिना आयुष्य पूर्ण करके उनमें से चमरेन्द्र, बलीन्द्र, व्यन्तरदेव आदि की अग्रमहिषियाँ (मुख्य रानियाँ) बनीं। उन्होंने भगवान महावीर के समवसरण में सूर्याभदेव की तरह अपनी विशिष्ट ऋद्धि-प्रदर्शन के साथ दर्शन किये, जिसे देखकर सामान्य जनता तो क्या, स्वयं गणधर गौतम भी आश्चर्य-मुग्ध हो गये । गौतम ने भगवान महावीर से उन देवियों के विषय में जब पूछा तो भगवान महावीर ने यह रहस्योद्घाटन किया कि वे विभिन्न इन्द्रों की अग्रमहिषियाँ हैं, जिन्होंने 'पुरुषादानी' भगवान पार्श्वनाथ के शासन में वृद्ध कुमारिका के रूप में दीक्षित होकर तप-संयम की आराधना की, जिस कारण इनको विशिष्ट देव ऋद्धि प्राप्त हुई ।
इन वर्णनों से एक बात स्पष्ट होती है कि भगवान महावीर के युग में भी जन-साधारण में भगवान पार्श्वनाथ के प्रति व्यापक असाधारण श्रद्धा और उनके नाम-स्मरण से लोगों के संकट निवारण एवं कार्य सिद्ध होने का दृढ़ विश्वास व्याप्त था । इसी कारण भगवान महावीर के युग में भगवान पार्श्वनाथ के लिए 'पुरुषादानी' का आदरपूर्ण सम्बोधन प्रचलित था ।
अनेक विद्वानों का मत है कि भगवान पार्श्वनाथ का चातुर्याम धर्म उस समय समग्र भारत में प्रमुख धर्ममार्ग के रूप में मान्यता प्राप्त था । तथागत बुद्ध ने भी पहले इसी चातुर्याम धर्ममार्ग को ग्रहण किया, फिर इसी के आधार अष्टांगिक धर्ममार्ग का प्रवर्तन किया।
देखें - निरयावलिका वर्ग ४ के दस देवियों के दस अध्ययन - ज्ञातासूत्र श्रुतस्कंध २, वर्ग १ से १०
नाम
लांछन
वंश
पिता
माता
च्यवन स्थान
च्यवन तिथि
जन्म-भूमि
जन्म-तिथि
दीक्षा तिथि केवलज्ञान-प्राप्ति केवलज्ञान-प्राप्ति तिथि
तीर्थंकर पार्श्वनाथ (संक्षिप्त परिचय)
निर्वाण स्थल निर्वाण-तिथि
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:
:
:
:
:
प्राणत
: चैत्र वदि १२
:
:
पार्श्वनाथ
सर्प
इक्ष्वाकु
अश्वसेन
वामादेवी
:
:
वाराणसी
पौष वदि १०
पौष वदि ११ वाराणसी चैत्र वदि ४
छद्मस्थ काल
आयुष्य
प्रधान गणधर
गणधरों की संख्या
साधुओं की संख्या
प्रधान साध्वी साध्वी संख्या शरीर वर्ण
शासनयक्ष
शासन यक्षिणी
:
सम्मेतशिखर
:
श्रावण शुक्ल ८
:
८४ दिन
: १०० वर्ष
:
:
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शुभ (दिन्न)
१०
१६,०००
पुष्पचूला
३८,०००
:
:
:
: नील
भगवान पार्श्वनाथ के निर्वाण तथा भगवान महावीर के धर्म प्रवर्तन काल के मध्य लगभग २५० वर्ष का अन्तराल माना जाता है। इस काल अवधि में भगवान पार्श्वनाथ की परम्परा में चार प्रमुख पट्टधर प्रभावशाली आचार्य होने का उल्लेख मिलता है
क्षमावतार भगवान पार्श्वनाथ
:
पार्श्वयक्ष
: पद्मावती
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