________________
राजा अपने परिवार के साथ दर्शन करने आया। हजारों जन प्रभु की देशना सुनते हैं। भगवान ने धर्म के स्वरूप पर प्रथम प्रवचन दिया। हिंसा-त्याग, असत्य-त्याग, चौर्य-त्याग तथा परिग्रह-त्याग रूप चातुर्याम धर्म द्वारा आत्मसाधना का मार्ग दिखाया।
विशेष रूप से भगवान ने श्रावक के १२ व्रत, ६० अतिचार, १५ कर्मादान आदि के विस्तृत वर्णन के साथ धर्म स्वरूप प्रतिपादन किया।
भगवान की देशना सुनकर राजा अश्वसेन, वामादेवी, प्रभावती आदि सैकड़ों स्त्री-पुरुष दीक्षित हुये। सैकड़ों गृहस्थ श्रावक व्रत धारण करते हैं। उस समय के प्रसिद्ध वेदपाठी शुभदत्त आदि अनेक विद्वानों एवं राजकुमारों आदि ने भी भगवान की देशना से प्रबुद्ध होकर दीक्षा ग्रहण की। भगवान ने श्रावक-श्राविका, साधु-साध्वी रूप चार तीर्थ की स्थापना की। शुभदत्त (दिन्न) प्रथम गणधर बने। भगवान पार्श्वनाथ के धर्मतीर्थ में कुल आठ गणधर हुए।
परन्तु आवश्यक सूत्र में दस गण और दस गणधर कहे हुए हैं। स्थानांग सूत्र में दो अल्पायुषी होने के कारण नहीं बताये गये हैं, ऐसा टिप्पण में बतलाया है। उन आठों के नाम थे-शुभ, आर्यघोष, वशिष्ट, ब्रह्मचारी, सोम, श्रीधर, वीरभद्र और यशस्वी। Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org