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दीक्षा के दिवस स्वीकार किया हुआ अट्ठम तप परिपूर्ण होने पर प्रभु विहार करते हुए कौपकट नगर पधारे। वहाँ धन्य नाम के गृहस्थ के घर पर भिक्षा के लिए पधारे। गृहस्थ ने भावपूर्वक प्रभु को खीर का दान किया। उसी समय देवताओं ने आकाश में "अहोदानं अहोदानं" घोषित किया और पाँच दिव्यों की वर्षा की। ____एक बार प्रभु कोशाम्ब वन में ध्यानलीन थे। धरणेन्द्र देव ने आकर प्रभु की वन्दना की-"अहो ! प्रभु के मस्तक पर इतने तेज सूर्य किरणें।" देव ने प्रभु के मस्तक पर तीन दिन तक सर्प के फन रूप छत्र खड़ा कर दिया। कहा जाता है इसी कारण उस स्थान का नाम अहिछत्रा प्रसिद्ध हो गया।
विहार करते हुए प्रभु एक तापस आश्रम के पास आये। प्रभु कूप के निकट एक वट-वृक्ष के नीचे ध्यान-मुद्रा में खड़े हो गये।
मेघमाली देव आकाशमार्ग से कहीं जा रहा था। नीचे उसने ध्यानस्थ पार्श्व प्रभु को देखा। अवधिज्ञान लगाया। बैर की उग्र भावना जाग्रत हुई। क्रोध का दावानल भभक प्रभु के छद्मस्थ अवस्था में एक सुन्दर प्रसंग का वर्णन भी मिलता है कि प्रभु विहार करते हुए कलि पर्वत के नीचे कादम्बरी वन में कुंड सरोवर के किनारे काउसग्ग मुद्रा में ध्यानस्थ थे, तब एक वन हाथी आकर सरोवर में स्नान कर जिन चरणों में कमल-पुष्पों से पूजन-अर्चन करता है। वह स्थान कलिकुंड तीर्थ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। हाथी मरकर देव बना एवं उस तीर्थ का उपासक बना।
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