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यवनराज और प्रसेनजित दोनों मित्र की तरह परस्पर गले मिलते हैं। एक-दूसरे से क्षमा माँगते हैं। उपहारों का आदान-प्रदान करते हैं।
राजा-"आप कृपा कर मेरी राजधानी को पवित्र कीजिए।"
पार्श्वकुमार हाथी पर बैठकर नगरी में पधारते हैं। पीछे दोनों राजा और उनकी विशाल सेना आ रही है। __प्रभावती ने महलों के गवाक्ष से पार्श्वकुमार को देखा-"जैसा सुना था उससे हजार गुना सुन्दर ! अद्भुत !"
वह हाथ जोड़कर प्रार्थना करती है-'"हे प्रभु ! आप जैसा स्वामी जिसे मिले उसका जीवन धन्य-धन्य हो जाता है।"
फिर भी उसे चिंता थी-"स्वामी ! पिताश्री की प्रार्थना स्वीकार करेंगे या नहीं?"
फिर सोचती है-'यदि मुझे स्वीकार नहीं किया तो मैं आजीवन कुमारी रहूँगी। इन्हीं का ध्यान-पूजन करके जीवन बिताऊँगी।'
राजसभा में स्वागत समारोह करके प्रसेनजित ने प्रार्थना की-“हे महामहिम ! अब मेरी पुत्री की प्रार्थना स्वीकार कीजिए।"
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क्षमावतार भगवान पार्श्वनाथ
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