________________
महल में आत्म-चिंतन में लीन बैठे पार्श्वकुमार ने रणभेरी सुनी। चौंककर खड़े हो गये। सेवक से पूछा-"क्या बात है? अचानक रणभेरी क्यों बजी।"
सेवक-"महाराज! युद्ध की तैयारी का आदेश हुआ है।" । पार्श्वकुमार ने पिता के पास आकर प्रणाम किया-"पिताश्री ! क्या बात है ? किस दैत्य, राक्षस या अधम पुरुष ने आपका अपराध किया है, जिसके लिए आप युद्ध सज्जित हो रहे हैं ?"
प्रसेनजित राजा की बात सुनाकर राजा अश्वसेन बोले-"वत्स ! किसी विपदाग्रस्त की सहायत करना और अन्याय का प्रतिकार करना हमारा राजधर्म है न?"
पार्श्वकुमार-"पिताश्री! यह तो सत्य है। अन्याय का प्रतिकार नहीं करना भी अन्याय है, अधर्म है, कायरता है।"
"वत्स ! इसीलिए हमने युद्धभेरी बजाई है।" पार्श्व-"किन्तु युवा पुत्र के बैठे पिता युद्ध में जाये, क्या यह उपयुक्त है ? पुत्र की शोभा है इसमें ?"
AMER
STALLEC
e
S.MIN क्षमावतार भगवान पार्श्वनाथ
40
Jain Education International 2010_03
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org