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एक दिन महाराज अश्वसेन राजसभा में सिंहासन पर बैठे थे तभी द्वारपाल ने आकर निवेदन किया- "महाराज ! एक सुन्दर आकृति वाला परदेशी दूत आपके दर्शन चाहता है।"
राजा -“उसे सम्मानपूर्वक राजसभा में लाओ ।"
दूत ने आकर राजा को नमस्कार किया - "वीर शिरोमणि महाराज अश्वसेन की जय हो !" राजा ने बैठने का संकेत किया। वह आसन पर बैठ गया ।
राजा ने पूछा - "भद्र पुरुष ! तुम किस देश से आये हो ? कौन हो, क्या प्रयोजन है ?"
'महाराज ! मैं कुशस्थल के महाराज प्रसेनजित का मित्र दूत हूँ। पुरुषोत्तम मेरा नाम है। मैं उनका सन्देश लेकर आया हूँ।"
राजा - "कहिए, क्या सन्देश है ?"
“आपने वीर शिरोमणि महाराज नरवर्म का नाम तो सुना ही होगा। वे महान् पराक्रमी थे । दूर-दूर प्रदेशों के राजाओं को जीतकर राज्य का विस्तार किया था।”
राजा अश्वसेन -“हाँ, सुना है राजा नरवर्म बड़े वीर और पराक्रमी थे।”
‘’राजन् ! अनेक राजाओं को अपने अधीन करने वाले राजा एक दिन एक सद्गुरु आचार्य के दर्शन करने गये। उनका उपदेश सुना तो मन विरक्त हो गया।"
क्षमावतार भगवान पार्श्वनाथ
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