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मोहक्षयादनुभवन्नपि नाथ ! मर्यो, नूनं गुणान् गयितुं न तव क्षमेत। कल्पान्तवान्तपयसः प्रकटोऽपि यस्माद्,
मीयेत केन जलधेर्ननु रत्नराशिः ? ।।४।। जैसा कि प्रलय के समय जब समुद्र पानी से बिलकुल खाली हो जाता है उस समय समुद्र में जितने रत्न हैं, वे सामने दीखने पर भी उनकी गणना नहीं हो सकती। उसी प्रकार हे नाथ ! मोहनीय कर्म के क्षय होने से यद्यपि मनुष्य को आपके स्वरूप का प्रतिभास होने लगता है, तो भी आपके गुणों की गणना नहीं हो सकती है, क्योंकि आपके गुण अनन्त हैं।
જેમ કે પ્રલયના સમયે જ્યારે સમુદ્રનું પાણી બિલ્કલ ખાલી થઈ જાય છે, તે સમયે સમુદ્રમાં જેટલાં રત્નો છે તે સામે દેખાવા છતાં તેમની ગણતરી નથી થઈ શકતી. તેવી જ રીતે હે નાથ! મોહનીય કર્મનો ક્ષય થવાથી જો મનુષ્યને તમારા સ્વરૂપનો પ્રતિભાસ થાય, તો પણ આપના ગુણોની ગણના ન થઈ શકે, કારણ આપના ગુણ અનંત છે.
Although on complete uprooting of Mohaniya Karmas the enlightened has a glimpse of your form, even then your infinite virtues are impossible to enumerate. Just as the heap of gems the ocean contains becomes visible at the time of a terrible tempest when it is empty of water, but even then can someone count this heap of gems? No, never!
चित्र-परिचय
जिस प्रकार समुद्र का पानी पीछे हटने से खाली समुद्र की तली में पड़ी असंख्य रत्न राशि दिखाई देती है, परन्तु उसकी गणना नही हो सकती।
उसी प्रकार प्रभु पार्श्वनाथ की प्रतिमा के समक्ष खड़े केवलज्ञानी साधु भगवन्त जिन्हें भगवान के गुणों का प्रतिभास तो है परन्तु उनका वर्णन करने में असमर्थ हैं।
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