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माता-"वत्स ! तुम विवाह करके हमारा कुल चलाओगे। राज्य-भार सँभालकर प्रजा का पालन करोगे। यह दो काम तुम्हें करने हैं।"
"माता-पिता की आज्ञा स्वीकार है।" वजनाभ बोला।
वज्रनाभ का विवाह हुआ। फिर राजतिलक हुआ। राजा-रानी ने दीक्षा लेकर अपना कल्याण किया। वजनाभ को एक पुत्र हुआ।
पुत्र योग्य होने पर वजनाभ ने कहा-"वत्स! हमारी कुल परम्परा के अनुसार अब यह राज्य-भार तुम ग्रहण करो। हमें दीक्षा लेने की आज्ञा दो।"
उसी समय उद्यानपालक ने आकर सूचना दी-"उद्यान में क्षेमंकर तीर्थंकर पधारे हैं।" वजनाभ बोला-"सचमुच मैं भाग्यशाली हूँ। मेरा संकल्प सफल होने का अवसर आ गया है।"
राजा वजनाभ ने जिनेश्वर भगवान की वन्दना कर प्रार्थना की-"प्रभो ! मैं अपने दायित्व से मुक्त हो गया हूँ। अब मुक्ति के मार्ग पर चलने की आज्ञा दीजिए।"
तीर्थंकर क्षेमंकर ने राजा वजनाभ को दीक्षा दे दी। वजनाभ मुनि निरन्तर श्रुताभ्यास और उग्र तप करने लगे।
क्षमावतार भगवान पार्श्वनाथ
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