SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 231
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ TAMINAMAJ अपने आप पर पश्चात्ताप हुआ-"मैंने अपने भाई की शिकायत राजा से की, यह अच्छा नहीं किया। मेरे कारण ही मेरा भाई जंगल में चला गया।' एक दिन मरुभूति का मन भाई के लिए बहुत पछताने लगा-'अब मुझे भाई के पास जाकर क्षमा माँगनी चाहिए। मेरे कारण ही भाई की आज यह दुर्दशा हुई है। भाई से भी ज्यादा मैं दोषी हूँ।' मरुभूति ने राजा से अपने मन की बात कही। राजा ने कहा-"अब उस दुष्ट का मुँह भी मत देखना ! ऐसे नीच कर्म का तो इससे भी कठोर दण्ड मिलना चाहिए था।" किन्तु मरुभूति का मन नहीं माना। चुपचाप वह जंगल में भाई से क्षमा माँगने चला गया। ___एक पहाड़ी के ऊपर कमठ सूर्य के सामने खड़ा तप कर रहा था। मरुभूति ने देखते ही पुकारा-"भ्रात ! मुझे क्षमा कर देना। मेरी भूल हुई। मेरे कारण ही आपको यह कष्ट भोगना पड़ा।" हाथ जोड़कर मरुभूति आकर कमठ के चरणों में गिर गया। उसकी आँखों से पश्चात्ताप के आँसू बह रहे थे। ____ मरुभूति को देखकर कमठ आग-बबूला हो उठा-"दुष्ट ! पहले घाव देकर फिर उस पर पट्टी बाँधने आया है। ढोंगी ! पाखंडी ! तू मेरा भाई नहीं, शत्रु है।" क्रोध में भान भूले क्षमावतार भगवान पार्श्वनाथ Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002583
Book TitleSachitra Sushil Kalyan Mandir Stotra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilmuni, Gunottamsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year2004
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Worship
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy