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________________ वरुणा - " विश्वास न हो तो अपनी आँखों से देख लेना।" मरुभूति ने एक दिन पत्नी से कहा- "मुझे दूसरे नगर में पूजा करवाने जाना है। चार-पाँच दिन के लिए बाहर जा रहा हूँ।" गाँव के बाहर जाकर उसने संन्यासी का वेष बनाया। सायंकाल कमठ के घर पर आकर पुकारा- "मैं तीर्थयात्रा करता हुआ यहाँ आया हूँ। रातभर ठहरने का स्थान चाहिए।" कमठ–‘“बाबा ! घर के बाहर बरामदे में रातभर ठहर जाओ ।" मरुभूति बरामदे में ठहर गया। पति को बाहर गया जानकर वसुंधरा कमठ के साथ खुल्लम-खुल्ला पापक्रीड़ा करने लगी। मरुभूति ने छुपकर यह सब देख लिया। उसके मन में बहुत ग्लानि हुई। आँखें बन्द कर लीं । सोचा- 'जब अपने घर में ही यह पाप पल रहा हो तो किससे शिकायत करूँ ?' आखिर उससे रहा नहीं गया। जाकर राजा से कहा- "महाराज ! जिस बड़े भाई को मैं अपने पिता समान समझ रहा था, वह ऐसा नीच कर्म कर रहा है ? इस पापाचार को रोकिए । " क्षमावतार भगवान पार्श्वनाथ Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only 5 www.jainelibrary.org
SR No.002583
Book TitleSachitra Sushil Kalyan Mandir Stotra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilmuni, Gunottamsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year2004
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Worship
File Size30 MB
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