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यस्य स्वयं सुर-गुरुर्गरिमाम्बुराशेः, स्तोत्रं सुविस्तृतमतिर्न विभुर् विधातुम्। तीर्थेश्वरस्य कमठ - स्मय - धूमकेतोः
तस्याहमेष किल संस्तवनं करिष्ये।।२।। जो कमठ दैत्य के अभिमान को भस्म करने के लिये धूमकेतु के समान थे। जिनके गुणों की गरिमा सागर के समान अपार थी। जिनकी स्तुति करने के लिये अतिशय बुद्धिशाली देवताओं के गुरु स्वयं बृहस्पति भी समर्थ नहीं हो सके, उन तीर्थपति पार्श्वनाथ भगवान की मैं स्तुति करूँगा।
જે કમઠ દૈત્યના અભિમાનને ભસ્મ કરવા માટે ધૂમકેતુ સમાન હતાં. જેમના ગુણોની ગરિમા સાગર સમાન અપાર હતી. જેમની સ્તુતિ કરવા માટે અતિશય બુદ્ધિશાળી દેવતાઓના ગુરૂ સ્વયં બૃહસ્પતિ પણ સમર્થ ન થઈ શક્યા, તેવા તીર્થપતિ પાર્શ્વનાથ ભગવાનની સ્તુતિ હું કરીશ.
I will sing a panegyric in praise of that Lord of the ford (Tirthapati or Tirthankar), Bhagavan Parshva Naath, who was like a comet for reducing to ashes the pride of demon Kamath. The glory of whose virtues was boundless like an ocean. Even Brihaspati, the extremely wise guru of gods, found himself incapable of singing in his praise.
| चित्र-परिचय
भगवान पार्श्वनाथ के धूमकेतु समान तीव्र तेज के सामने कमठ का अहंकार जलकर भस्म हो गया।
देवताओं के गुरु बृहस्पति प्रभु पार्श्वनाथ के असंख्य गुणों का वर्णन करने का प्रयास करते हुये।
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