________________
ADHA
o
यद्यस्ति नाथ ! भवदंघ्रि-सरोरुहाणां, भक्तेः फलं किमपि सन्तत-संचितायाः। तन्मे त्वदेकशरणस्य शरण्य ! भूयाः,
स्वामी त्वमेव भुवनेऽत्र भवान्तरेऽपि।।४२।। हे नाथ ! मैं एक अतीव निम्न श्रेणी का भक्त हूँ। मेरी भक्ति ही क्या है ? फिर भी आपके चरण-कमलों की चिरकाल से संचित की हुई भक्ति का यदि कुछ भी फल हो, तो हे शरणागत वत्सल ! जन्म-जन्मान्तर में आप मेरे स्वामी बनें। मुझे केवल आपकी शरण ही अपेक्षित है और कुछ भी नहीं।
હે નાથ ! હું એક અતિવ નિમ્ન શ્રેણીનો ભક્ત છું. મારી ભક્તિ જ શું છે, છતાં પણ આપના ચરણ-કમલોની ચિર-કાલથી સંચિત થયેલી ભક્તિનું યદિ કાંઈ પણ ફળ હો, તો હે શરણાગત વત્સલ ! જન્મ-જન્માંતરમાં આપ મારા સ્વામી બનો. મને કેવળ આપનું શરણ જ અપેક્ષિત છે, બીજું કાંઈ પણ નહીં.
E
O Naath ! I am a very ordinary devotee. Though my devotion is insignificant but if at all there is some reward for my devotion, since time immemorial, for your pious lotus-feet then, O Saviour of all, I beseech you to be my Lord for all my future rebirths. I only seek refuge at your feet and nothing else.
चित्र-परिचय
प्रभु पार्श्वनाथ के चरण कमलों की भक्ति पूर्वक वन्दना करता भक्त जन्म जन्मान्तर तक प्रभु भक्त बनना चाहता है। नीचे के चित्र में अलग-अलग जन्मों में प्रभु भक्ति करता भक्त दिखाया गया है।
Hd
Jain Education International 2010 03
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org