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) सुपाच 2011
चन्द्रप्रभ
सुविधि:
शीतल
श्रेयांस
वासुपूज्य
१६. भगवान शान्तिनाथ
पद्य
भगवान शान्तिनाथ के पूर्व-भवों का जो वृत्तान्त मिलता है, उससे स्पष्ट है कि उनका जीना जन्म-जन्मान्तरों में तप-संयम की सुदीर्घ आराधना करता रहा। एक वार वह पूर्व महाविदह की पुटकिनी नगरी में मेघरथ नामक राजा बना।
ध्वजा शरणागत रक्षा
राजा मेघराज बहुत दयालु, करुणावान और जीव मात्र का प्रतिपालक था। दया के संस्कार उसकी रग-रग में रमे थे। इतना ही नहीं, क्षत्रिय वीर योद्धा होने के कारण वे दूसरे जीवों की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व वलिदान करने का भी अद्भुत साहस रखते थे। ___ एक बार महाराज मेघरथ पर्व तिथि का दिन होने के कारण पौषध व्रत धारण करके धर्माराधना कर रहे थे कि अचानक एक कबूतर भयभीत हुआ उनकी गोद में आकर गिर पड़ा और वह गानव भाषा में दीनतापूर्वक पुकारने लगा-“महाराज ! मुझे बचाओ ! मुझे शरण दो ! मेरी रक्षा करो !'
राजा ने कबूतर को भय से काँपते देखकर आश्वासन दिया-तुम शान्त हो जाओ। निर्भय रहो। यहाँ तुम्हें अव किसी प्रकार का भय नहीं हो सकता।"
सरोवर ___ तभी एक वाज पक्षी आया और राजा से कहने लगा-'महाराज ! यह मेरा शिकार है, इसे छोड़ दीजिए। मैं इसका भक्षण करूँगा।"
गजा ने बाज को समझाया-"तुम्हें भूख लगी है, तो अन्य खाद्य पदार्थों से क्षुधा शान्त करो। जो वस्तु चाहिए सो मिल जायेगी। किसी जीव का भक्षण कर उसके प्राण क्यों ले रहे हो?'
बहुत समझाने-बुझाने पर भी बाज ने एक ही हट पकड़ ली- “मैं माँसाहारी हूँ. मुझे माँस चाहिए। माँस के अभाव में मैं भूख से मर जाऊँगा तो मेरी हत्या के पाप के भागी आप होंगे।"
किसी भी प्रकार वाज नहीं माना तो राजा ने कहा-"अगर तुझे माँस ही चाहिए तो किसी अन्य प्राणी का नहीं, मैं अपने शरीर का माँस तुझे दे सकता हूँ। तू वह खाकर अपनी भूख मिटा ले. परन्तु शरणागत पक्षी
विमानको तुझे नहीं सोंपूँगा।"
भवन ___कबूतर के भार के बराबर माँस देने की शर्त पर बाज राजी हो गया। तराजू के एक पलड़े में कबूतर | रखा गया, दूसरे पलड़े में गजा अपने शरीर का माँस काट-काटकर रखते गये। परन्तु आश्चर्य कबूतर का पलड़ा फिर भी भारी ही रहा।
राजा के शरीर का माँस कटते देखकर रानियाँ, मंत्री आदि प्रजाजन राजा से बार-बार करुण पुकार करने लगे-''महाराज ! यह आप क्या कर रहे हैं ? एक छोटे से जीव कबूतर के लिए अपना बहुमूल्य जीवन
राशि वलिदान मत कीजिए। अपने शरीर का नाश मत कीजिए।" उधर बाज को भी बहुत समझाया--परन्तु वह भी अपनी जिद्द से टस से मस नहीं हुआ। (चित्र S-1/अ) राजा मेघरथ भी अपने संकल्प पर अविचल रहे और अपने हाथ-पाँव आदि अंगों को काटकर तराजू में
निर्धम रखते चले गये। राजा का यह अविचल धैर्य और अद्वितीय करुणा भाव देखकर सभी चकित थे। तभी
समुद्र
रत्न
अग्नि
भगवान शान्तिनाथ
Bhaga"an Shantinath
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