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rigorous spiritual practices. He got Nirvana at Sammetshikhar on the ninth day of the dark half of the month of Kartik. Extinction of the Religious Ford
The tradition of the four pronged religious ford started by Bhagavan Rishabhdev gradually became extinct after the Nirvana of Bhagavan Suvidhinath. After his death, first the ascetic organisation disintegrated and a time came when there was no ascetic left. The religious discourses too were given by common citizens or Shravaks. Slowly the influence of wealth became overpowering and people started forgetting the principals of five vows including Ahimsa and truthfulness. The discipline of spiritual principles gave way to ritualistic exchanges of wealth and total indiscipline.
ध्वजा
कुम्भ
१०. भगवान शीतलनाथ
पद्य सरोवर
समुद्र
विमान
भगवान शीतलनाथ का जीव पूर्व-भव में पद्मोत्तर नाम का राजा था। राजा होकर भी वह अत्यन्त क्षमाशील थे। दीक्षा लेकर उन्होंने उत्कृष्ट क्षमा धर्म की आराधना की। फलस्वरूप तीर्थंकर-नाम-कर्म का उपाजन कर प्राणत नामक दसवें स्वर्ग में उत्पन्न हुए।
भद्दिलपुर के राजा दृढरथ की रानी नंदादेवी ने १४ शुभ स्वप्न देखकर एक महान् पुण्यशाली पुत्र को जन्म दिया।
जन्मोत्सव एवं नामकरण के अवसर पर राजा ने एक रहस्य प्रकट करते हए बताया--"कछ म ग्रीष्मकाल में मेरे शरीर में भयंकर ताप-ज्वर हो गया था। गौशीर्ष चन्दन आदि के लेप से मिली। किन्तु जब यह पुत्र माता के गर्भ में आया तो रानी नंदादेवी ने मेरे शरीर पर केवल हाथ फिराया। उनके स्पर्श से ही मुझे गौशीर्ष चन्दन से भी अधिक शीतलता अनुभव हुई। ताप-ज्वर मिट गया।" लगता है हमारे पुत्र की आत्मा पूर्व-जन्म में अवश्य ही महान शान्ति और क्षमा धर्म की आराधक रही है जिस कारण उसका आगमन ही अत्यन्त शीतलतादायक सिद्ध हुआ। हम अपने पुत्र का नाम “शीतलनाथ" रखेंगे। (चित्र G/स)
युवा होने पर शीतलनाथ का विवाह हुआ, फिर राज्याभिषेक और यौवन ढलने से पहले ही राजा का हृदय संयम के लिए ललक उठा। पुत्र को राज्यपद देकर संयम लिया। तीन मास के छद्मस्थ काल पश्चात् केवलज्ञान प्राप्त कर तीर्थंकर बने और अन्त में सम्मेदशिखर पर प्रभु ने निर्वाण प्राप्त किया।
भवन
राशि
निधूम अग्नि
भगवान शीतलनाथ
( ५३ )
Bhagavan Sheetalnath
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