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सहज ही बता देतीं। इस आश्चर्यजनक बौद्धिक विकास को देखकर सभी चकित थे। पुत्र-जन्म के उत्सव के समय राजा सुग्रीव ने. इसी आधार पर घोषणा की--"हर कार्य की कुशल विधि बताने की निपुणता के कारण हम महारानी के अंगजात का नाम 'सुविधि' रखना चाहते हैं।" इसके कुछ समय पश्चात् पुत्र को दाँत आने के समय माता के मन में पुष्प-क्रीड़ा की इच्छा उत्पन्न हुई। माता का पुष्प-प्रेम देखकर कुमार का दूसरा नाम 'पुष्पदंत' प्रसिद्ध हो गया। इनके शरीर का वर्ण भी चाँदी की भाँति श्वेत उज्ज्वल था।
युवावस्था में सांसारिक भोगों एवं राज वैभव का त्यागकर संयम ग्रहण किया। विशिष्ट ध्यान साधना द्वारा चार महीने के छद्मस्थ काल में ही घातिकर्मों का क्षय करके केवलज्ञान प्राप्त किया। चार तीर्थ की स्थापना की और अन्त में कार्तिक कृष्णा नवमी को सम्मेदशिखर पर मोक्ष पधारे। तीर्थ विच्छेद
भगवान सुविधिनाथ के मोक्ष-गमन पश्चात् धीरे-धीरे श्रमण धर्म का विच्छेद हो गया। काल-प्रभाव से एक भी साधु नहीं बचा। लोग श्रावकों से ही धर्म-श्रवण करते थे। श्रावकों में भी धीरे-धीरे लोभ भावना आ गई। श्रावक धर्म सुनाते, बदले में श्रोतागण उनकी अर्थ-पूजा करते। धर्म पर धन का प्रभाव बढ़ते-बढ़ते धीरे-धीरे श्रावक स्वर्णदान, गृहदान. गोदान और कन्यादान तक लेने लग गये। इस प्रकार ऋषभदेव द्वारा प्ररूपित सत्य-अहिंसा-अपरिग्रह धर्म के मूल सिद्धान्त लोग भूलने चले गये और असंयम की पूजा होने लग गई।
गज
वृषभ
9. BHAGAVAN SUVIDHINATH
लक्ष्मी
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पुष्पमाला|
In the tradition started by Bhagavan Rishabhdev the ninth Tirthankar who re-established the four pronged religious ford was Bhagavan Suvidhinath. During his earlier incarnation as emperor Mahapadma of Pushkalavati Vijay he purified his soul to the extant of earning Tirthankar-nam-and-gotra-karma. He took birth in the Vijayant dimension of gods and from there he descended into the womb of queen Rama Devi, wife of king Sugriva of Kakandi town.
During the period of pregnancy queen Rama developed a strange capacity to develop processes for doing even the most difficult of tasks. Everyone got astonished at her skill. When the child was born the king accordingly named him as Suvidhi (correct procedure). During the teething period of the child the mother got a craving for playing with flowers. As such, he was also popularly known as Pushpadant (flower-tooth).
Suvidhinath had a normal princely life, but with detachment. He became an ascetic at an early age and attained omniscience only after four months of
चन्द्र
१. विशेष वर्णन के लिए देखो उत्तर पुराण पर्व ७६, पृ. ६६-७८/२. श्लोक ६४.९६।
Illustrated Tirthankar Charitra
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सचित्र तीर्थंकर चरित्र
विमल
अनन्त
धर्म
शान्ति
कुन्थु
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