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सिंह
यह बालक इनको री संपत्ति भी दे दो। बस मेरी नजरों के नीचे बालक रहेगा तो मेरा मन भरा रहेगा ।"
मातृ हृदय की पीड़ा को रानी समझ गईं। निर्णय दिया-“पहली माँ नकली है, उसे कारागार में बंद कर दो। उसे पुत्र का मोह नहीं है, धन का लोभ है। और इस असली माँ को सम्मानपूर्वक पुत्र सौंप दिया जाये।"
रानी के निर्णय से सभा चकित रह गई। नकली माँ ने राजसभा से क्षमा माँगी। (चित्र G/अ)
वैशाख शुक्ला अष्टमी को महान् भाग्यशाली पुत्र ने जन्म लिया। समूचे संसार में जैसे आनन्द एवं सद्विचारों की किरणें फैल गईं। माता के मन पर बालक की अवस्थिति का प्रभाव देखकर राजा ने घोषणा की-"यह बालक सबको सुमति (सबुद्धि) देने वाला है, अतः इसका नाम "सुमतिकुमार" रखना चाहिए।
युवावस्था में सुमतिकुमार का विवाह हुआ। फिर राज्याभिषेक कर पिता ने दीक्षा ले ली। अनेक वर्षों तक राज्य करके उन्होंने भी अपने पुत्र को राज-काज सौंपकर एक हजार व्यक्तियों के साथ दीक्षा ग्रहण की।
बीस वर्ष तक ध्यान-तप आदि साधना करने के पश्चात् चैत्र शुक्ला ११ को उन्हें केवलज्ञान प्राप्त हुआ। चार तीर्थ की स्थापना करके तीर्थंकर बने और अन्त में सम्मेदशिखर पर आरोहण कर पादोपगमन अनशनपूर्वक देह त्यागकर सिद्ध-बुद्ध मुक्त हुए।
गज
वृषभ
5. BHAGAVAN SUMATINATH
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लक्ष्मी
माला
Vijayasen was the king of Shankhpur town in the Purva Mahavideh area. He had a son named Purushasimha. While he had gone for a walk in the garden one day, the prince listened to the discourse of Acharya Vinayanandan Dev. He became detached and turned ascetic. As the result of vigorous penance and higher spiritual practices, he earned the Tirthankar-nam-and-gotra-karma. Completing his age, he reincarnated as a god in the Vijayant dimension.
From Vijayant dimension, the soul that was Purushasimha descended into the womb of queen Mangalavati/Sumangala, wife of king Megh of Ayodhya. The news of the queen being pregnant made the atmosphere of Ayodhya live with happiness and joy.
One day two women and a little boy came to the king's court to seek justice. One of the women put forth her case before the king, “Sire ! We both are wives of a rich seafaring merchant. Our husband has left for his heavenly abode leaving behind we two, a son, and heaps of wealth. The child truly belongs to me but this second wife of the merchant claims it to be her. This is nothing but a conspiracy to grab the wealth that would be inherited by the child. Save me, my Lord ! I seek my son and justice from you."
चन्द्र
सर्य
Illustrated Tirthankar Charitra
(४६ )
सचित्र तीर्थंकर चरित्र
विमल
अनन्त
धर्म
शान्ति
अर
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