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५. भगवान सुमतिनाथ
ध्वजा
कुम्भ
पद्मा सरोवर
विनीता नगरी के मेघरथ राजा की पत्नी का नाम था-सुमंगलादेवी। वैजयन्त विमान से च्यवकर एक अनन्त पुण्यशाली प्राणी ने माता के गर्भ में प्रवेश किया तो समूचे नगर में स्वाभाविक आनन्द/ वातावरण छा गया।
एक दिन राजा की सभा में दो स्त्रियाँ एक छोटे बच्चे को लेकर न्याय माँगने आईं। उन्होंने कहा-"हम एक धनाढ्य समुद्र व्यापारी (सार्थवाह) की पत्नियाँ हैं। हमारा पति एक पुत्र तथा हम दोनों को छोड़कर स्वर्गवासी हो गया है। यह पुत्र मेरा है, परन्तु दूसरी कहती है-मेरा है। क्योंकि वह सोचती है, पुत्र के साथ पति के धन की स्वामिनी भी मैं बन जाऊँगी। इसलिए अब आप मुझे न्याय दिलाइए और मेरा पुत्र भी ! मेरी रक्षा करो महाराज !"
दूसरी ने भी उसी लहजे में बात कही। दोनों एक-दूसरी पर आरोप-प्रत्यारोप लगा रही थीं और स्वयं को ही बालक की सच्ची माँ बताती थीं। बालक बहुत छोटा था, बोल नहीं पाता था और बचपन से ही दोनों का समान प्यार मिला इसलिए उसकी असली माँ कौन है, वह भी पहचान नहीं पाता था।
राजा के सामने बड़ी उलझन थी। न्याय करते-करते, निर्दोष के साथ अन्याय नहीं हो जाये, इसी बात का डर था। राजा, मंत्री आदि सभी इस विचित्र विवाद पर उलझन में थे। संध्या हो गई। राजा के भोजन में भी विलम्ब हो रहा था, परन्तु कुछ भी निर्णय नहीं हो सका तो विवाद को दूसरे दिन के लिए टालकर राजा भोजन के लिए महलों में चले गये। ___महारानी सुमंगला ने पूछा-“महाराज ! आज संध्या हो गई, भोजन में इतना विलम्ब हो गया, ऐसी क्या समस्या आ पड़ी थी ?"
राजा ने दोनों स्त्रियों का विवाद बताकर कहा-"किसी को कुछ भी समझ नहीं आ रहा है कि इन दोनों में सच्ची माँ कौन है, झूठी कौन है?"
महारानी ने हँसकर कहा-"महाराज ! स्त्रियों का विवाद तो हम स्त्रियों को ही निपटाने दीजिए न? यह काम मुझे सौंप दीजिए, मैं सही निर्णय कर दूंगी ।" __ दूसरे दिन राजसभा में स्वयं महारानी पधारी। दोनों महिलाएँ उनके सामने उपस्थित हुईं। दोनों की बोल-चाल, भाव-भंगिमा इतनी सहज एवं एक समान थी, कि रानी भी उनका झूठ नहीं पकड़ सकीं। सहसा रानी ने कहा-“माँ दो हैं और बालक एक है। बालक का बँटवारा हो नहीं सकता। हमारी होने वाली सन्तान भव्यात्मा है। जब उसका जन्म हो जायेगा, तब हम उन्हीं से पूछकर तुम्हारे विवाद का निर्णय करेंगी, तब तक यह बालक राजकीय संरक्षण में रहेगा। इसके पिता की संपत्ति भी राजकीय संरक्षण में रहेगी। उस समय तक तुम दोनों प्रतीक्षा करो।" __नकली माँ ने रानी की शर्त स्वीकार ली। किन्तु असली माँ फफक-फफककर रोने लगी-“नहीं ! नहीं ! मेरे पुत्र से मुझे विलग मत करो। इतने समय तक मैं अपने पुत्र का मुँह देखे बिना नहीं जी सकूँगी। भले ही
विमानभवन
राशि
निधूम अग्नि
भगवान सुमतिनाथ
Bhagavan Sumatinath
मल्लि
| मुनिसुव्रत
नमि
अरिष्टनेमि
पार्श्व
महावीर
-o-metermomei-due-emily
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