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सिंह
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वाला एक दिव्य हार तथा राक्षसी विद्या मेघवाहन को देकर स्वयं मुनि बन गया। मेघवाहन राजा “राक्षस वंश" का आदि पुरुष बना, जिसमें आगे चलकर रावण आदि ने जन्म लिया। सगर के साठ हजार पुत्रों का मरण
सगर चक्रवर्ती के साठ हजार पुत्र एक बार देशाटन के लिये निकले। जन्हुकुमार उनमें सबसे बड़ा था। चक्रवर्ती सम्राट के पुत्र और जवानी का जोश-सभी पुत्र बड़ी उच्छृखलतापूर्वक मनमानी करते हुए अष्टापद की तलहटी में पहुँच गये। वहाँ उन्होंने बड़ी-बड़ी खाइयाँ खोदकर उसमें गंगा का पानी प्रवाहित कर दिया। इस आकस्मिक जल-प्रपात से भवनवासी नागकुमारों के भवन डूबने लगे। तब नागकुमारों के राजा ज्वलनप्रभ ने उन्हें समझाया, रोका, परन्तु वे अपनी मनमानी से बाज नहीं आये। अन्त में क्रुद्ध होकर नाग राजा ने साठ हजार कुमारों को वहीं पर भस्म कर डाला।
पुत्रों के आकस्मिक मरण से सगर चक्रवर्ती को भारी दुःख हुआ। धीरे-धीरे शोकमुक्त होकर उसने अपने ज्येष्ठ पौत्र भगीरथ को राज्य सौंपा और स्वयं भगवान अजितनाथ के चरणों में मुनि बनकर आत्म-साधना में प्रवृत्त हो गया।
अपना अन्तिम समय निकट जानकर तीर्थंकर अजितनाथ सम्मेदशिखर पर्वत पर पधारे। उनके साथ अन्य एक हजार श्रमण भी थे। सभी ने वहाँ पर अनशन व्रत धारणकर मोक्ष प्राप्त किया। चैत्र शुक्ला पंचमी के दिन भगवान अजितनाथ का निर्वाण हुआ।
गज
वृषभ
लक्ष्मी
पुष्पमाला
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१. कहते हैं जब इन नौ मणियों का हार रावण पहनता था तो उसके नौ प्रतिबिम्ब दिखाई देते इस कारण उसका नाम
'दशमुख' (एक मुख वास्तविक, नौ प्रतिबिम्ब) या 'दशकन्धर' प्रसिद्ध हुआ। २. जैन ग्रंथों के अनुसार जन्हुकुमार द्वारा अष्टापद पर्वत तक गंगा का प्रवाह लाने के कारण गंगा को जान्हवी कहा जाता है।
(त्रिषष्टि.) ३. जन्हु पुत्र भगीरथ ने अपने पिता तथा पितृव्य (चाचाओं) की अस्थियाँ उसी गंगा-प्रवाह में प्रवाहित कर दी। भगीरथ के
अनुकरण पर आज भी पुत्र आदि संतानें अपने सम्बन्धियों की अस्थियाँ गंगा में प्रवाहित करती हैं। Illustrated Tirthankar Charitra
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सचित्र तीर्थंकर चरित्र
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