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________________ - २. भगवान अजितनाथ ध्वजा पद्य भगवान अजितनाथ का जीव पूर्व-भव में महाविदेह क्षेत्र में विमलवाहन नामक प्रतापी राजा था। एक मुनि के सत्संग-प्रभाव से राजा को भोग-विरक्ति हो गई और वे श्रमण बनकर उग्र तपश्चरण, ध्यान, गुरु-सेवा, संघ-सेवा आदि में तल्लीन रहने लगे। उसी भव में तीर्थंकर-नाम-कर्म का उपार्जन किया। आयुष्य पूर्णकर स्वर्ग में गये। देव आयु पूर्णकर विनीता (अयोध्या) नगरी के इक्ष्वाकुवंशीय जितशत्रु राजा की रानी विजयादेवी के गर्भ में आये। माता ने १४ दिव्य स्वप्न देखे। __माता के गर्भ-प्रभाव से राजा जितशत्रु का पराक्रम-प्रभाव अद्वितीय रूप में बढ़ने लगा। दुर्दान्त शत्रु भी आकर उनके सामने झुकने लगे। लोग कहते-"राजा जितशत्रु तो आज संसार में अजेय योद्धा हैं। उन्हें कोई जीत नहीं सकता, वे अजित हैं।" (चित्र G-2/अ) माघ शुक्ला अष्टमी की रात्रि में माता ने महान् पुण्यशाली पुत्र को जन्म दिया। पुत्र जन्मोत्सव के समय इसी प्रभाव को स्मरण कर राजा ने पुत्र का नाम-“अजितकुमार" रखा। राजा जितशत्रु के छोटे भाई सुमित्रविजय थे। उनकी पत्नी का नाम वैजयंती था। वैजयंती ने भी १४ स्वप्न | सरोवर देखे। कुछ समय बाद उन्हें भी पुत्र-लाभ हुआ। पुत्र का नाम रखा-“सगर"। वृद्धावस्था आने पर राजा जितशत्रु ने अजितकुमार को राज्य-भार सौंपने का विचार किया। परन्तु अजितकुमार के हृदय में तो जन्म से ही विरक्ति थी। इसलिए उन्होंने राज्य-भार स्वीकार नहीं किया। तब समुद्र “सगर" को राज्य सौंपा गया। युवावस्था में ही अजितकुमार ने संसार त्याग दिया और एकान्त जंगलों में ध्यान तप करने लगे। उनकी साधना का प्रभाव जंगली पशुओं पर भी पड़ा। सिंह, गाय, हाथी, हिरण आदि पशु परस्पर वैर-भाव त्यागकर मुनि के पास आकर प्रेम से बैठ जाते, जीभ से उनके चरणों का स्पर्श कर अत्यन्त शान्ति और आनन्द का अनुभव करते। (चित्र G-2/4) विमानदीक्षा के १२ वर्ष बाद भगवान अजितनाथ को सहनाम्र वन में उच्च ध्यान-साधना करते हुए केवलज्ञान भवन की प्राप्ति हुई। देवताओं ने समवसरण की रचना की। भगवान ने धर्मध्यान के विविध स्वरूपों पर हृदयस्पर्शी उपदेश दिया। जिसे सुनकर हजारों व्यक्तियों ने त्याग-मार्ग पर चरण बढ़ाये। राजा सगर अपने पराक्रम से षट्खण्ड विजय कर चक्रवर्ती सम्राट् बने। सगर की हजारों रानियाँ थीं, रत्न जिनसे साठ हजार पुत्र उत्पन्न हुए। चक्रवर्ती सगर के समय में ही मेघवाहन नाम का प्रतापी राजा हुआ। सगर चक्रवर्ती, राजा मेघवाहन तथा राक्षसद्वीप का विद्याधर भीम आदि भगवान का धर्म-उपदेश सुन रहे थे। भगवान की देशना से राक्षसाधिपति भीम को वैराग्य हो गया। भीम के कोई सन्तान नहीं थी। उसने वहीं पर राजा मेघवाहन को अपना निधूम उत्तराधिकारी नियुक्त कर लंका तथा पाताल लंका नाम की नगरियों का राजा बना दिया। नौ बड़ी-बड़ी मणियों भगवान अजितनाथ ( ३७ ) Bhagavan Ajitnath राशि अग्नि Jain-eddicationsiriternmenomeromotor -or-Primete-Perstoneite-orily Morjaimenorary.org
SR No.002582
Book TitleSachitra Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1995
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Story
File Size13 MB
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