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________________ सिंह गज वृषभ युगलियों के समय मनुष्य पूर्णतः प्रकृति पर आश्रित था। प्राप्त वस्तु का भोग करना ही उनकी जीवन शैली थी। इसलिए युगलिया युग को 'भोग भूमि-काल' भी कहा जाता है। कुलकर नाभिराजा के समय तक मनुष्य इसी भोग भूमि में जी रहा था। ऋषभदेव का जन्म अवसर्पिणी काल का तीसरा आरा जब समाप्त होने पर था तब एक शुभ रात्रि में एक महान् पुण्यशाली आत्मा ने नाभिराजा की पत्नी माता मरुदेवा की कुक्षि में प्रवेश किया। प्राचीन जैन ग्रन्थों में बताया गया है कि ऋषभदेव की आत्मा ने पिछले अनेक जन्मों में दीर्घकालीन तपस्याएँ की थीं। सेवा, दान, ध्यान, तप, और शुभ भावों की उच्चता के कारण उसने महान् पुण्यों का उपार्जन किया। __ एक जन्म में धन्ना सार्थवाह बनकर उसने तपस्वी मुनियों आदि को दान दिया था। जीवानन्द वैद्य के जन्म में उसने निःस्वार्थ भाव से रुग्ण मुनियों व जनता की खूब सेवा की थी और वज्रनाभ नामक राजा के जन्म में उसने दीन-दुखियों का पालन-पोषण किया था। उसने लोकसेवा के अनेक कार्य किये और अन्त में राज्य त्यागकर मुनिव्रत धारण कर अपूर्व ज्ञान-उपासना, तप, ध्यान, तितिक्षा आदि की दीर्घकालीन साधना करके तीर्थकरनाम-कर्म का उपार्जन किया। पूर्व-जन्म के इन महान् पुण्यों के कारण ऋषभदेव के रूप में उनका जन्म हुआ। महान् भाग्यशाली आत्मा के गर्भ-प्रवेश लेने पर उसी रात्रि में माता मरुदेवा ने १४ शुभ स्वप्न देखे। सुख शय्या पर सोये हुए उन्हें ऐसा अनुभव होने लगा कि निर्मल आकाश से उतरकर एक अत्यन्त बलिष्ट सुन्दर दूध-सा उज्ज्वल “वृषभ" मेरे मुख द्वारा उदर में प्रवेश कर रहा है। इसी विलक्षण स्वप्न के साथ माता ने क्रमशः अन्य स्वप्न भी देखे स्वप्न-२. पर्वत के समान ऊँचा चार दाँत वाला गजराज, स्वप्न-३. केशरी सिंह, स्वप्न-४. कमलासन पर विराजित लक्ष्मी देवी, स्वप्न-५. फूलों की विकसित माला, स्वप्न-६. आकाश में चमकता पूर्ण चन्द्र, स्वप्न-७. प्रभास्वर सूर्य, स्वप्न-८. लहराती ध्वजा, स्वप्न-९. स्वर्ण कलश, स्वप्न-१०. कमलों से खिला पद्म-सरोवर, स्वप्न-११. क्षीर समुद्र, स्वप्न-१२. देव विमान, स्वप्न-१३. रत्नों की राशि, स्वन-१४. धूम्ररहित अग्नि। (चित्र R-1/अ) Illustrated Tirthankar Charitra ( २४ ) सचित्र तीर्थकर चरित्र लक्ष्मी पुष्पमाला चन्द्र विमल अनन्त धर्म शान्ति कन्थ Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002582
Book TitleSachitra Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1995
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Story
File Size13 MB
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