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ध्वजा
२०. तीर्थंकर के केवली-समुद्घात नहीं होता; केवली के होता है। २१. तीर्थंकर का जन्म क्षत्रिय कुल में ही होता है; केवली सभी कुलों के हो सकते हैं। २२. तीर्थंकर के सम-चतुरन संस्थान ही होता है; केवली के ६ में से कोई भी हो सकता है। २३. तीर्थंकर का आयुष्य जघन्य ७२ वर्ष, उत्कृष्ट ८४ लाख पूर्व का होता है; सामान्य केवली का आयुष्य जघन्य
९ वर्ष, उत्कृष्ट करोड़ पूर्व का होता है। २४. तीर्थंकर की अवगाहना जघन्य ७ हाथ, उत्कृष्ट ५०० धनुष्य की होती है। सामान्य केवली की अवगाहना
जघन्य २ हाथ, उत्कृष्ट ५ धनुष्य की होती है। २५. तीर्थंकर मात्र १५ कर्म-भूमि में ही होते हैं; केवली संहरण की अपेक्षा सम्पूर्ण अढ़ाई द्वीप में हो सकते हैं। २६. तीर्थंकर स्वयं ही दीक्षा लेते हैं, गुरु से नहीं; केवली स्वयं या गुरु से भी दीक्षा ले सकते हैं। २७. तीर्थकर तीसरे-चौथे आरे में ही होते हैं; सामान्य केवली सामान्यतः चौथे आरे में और चौथे आरे में जन्मे
हुए पाँचवें में भी केवली हो सकते हैं। २८. दो तीर्थंकर आपस में मिलते नहीं; केवली मिलते हैं। २९. तीर्थंकर जघन्य २०, उत्कृष्ट १७० होते हैं; केवली जघन्य २ करोड़, उत्कृष्ट ९ करोड़ होते हैं। ३०. तीर्थंकर के अर्थ रूपी उपदेश से गणधर द्वादशांगी की रचना करते हैं; केवली के ऐसा नहीं होता। ३१. तीर्थंकर के केवलज्ञान प्राप्ति के बाद उपसर्ग आते नहीं; केवली के उपसर्ग आ सकते हैं। ३२. समवसरण की रचना तीर्थंकर के लिए होती है; केवली के लिए नहीं। ३३. तीर्थंकर का प्रथम उपदेश खाली नहीं जाता; केवली के लिए ऐसा नियम नहीं। ३४. नरक या देव गति से आए हुए मनुष्य ही तीर्थंकर बनते हैं; केवली चारों गति से आकर जन्मे हुए बन
सकते हैं। ३५. तीर्थंकर के वेदनीय कर्म शुभाशुभ, शेष तीन अघाति कर्म एकान्त शुभ; केवली के आयुष्य कर्म शुभ, शेष
तीन शुभाशुभ होते हैं। ३६. तीर्थंकर की सभा में अभवि नहीं आता; केवली की सभा में आ सकता है। ३७. तीर्थंकर एक क्षेत्र में एक ही होते हैं; केवली अनेक हो सकते हैं।
(प्रवचन सारोद्धार के आधार पर)
पद्म सरोवर
समुद्र
विमानभवन
रत्न राशि
निधूम अग्नि
परिशिष्ट १०
(२०३ )
Appendix 10
मल्लि
मुनिसुव्रत
नमि
अरिष्टनेमि
| पार्श्व
महावीर
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