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() पळाम ()
परिशिष्ट १०
तीर्थंकर और केवली में क्या अन्तर है?
सिंह
वृषभ
लक्ष्मी
आंतरिक निर्मलता की अपेक्षा साधकों के कई प्रकार हैं। जिनकल्पी, अभिग्रहधारी, प्रमत्त, अप्रमत्त, सरागी. वीतरागी आदि। प्रथम (सरागी) स्तर साधु का है तो आखिरी वीतराग का, तीर्थंकर और केवलज्ञानी का। यद्यपि तीर्थंकर और केवलज्ञानी की ज्ञान-सम्पदा में अन्तर नहीं होता, किन्तु तीर्थंकर पद अपने आप में महत्त्वपूर्ण है। उसकी अपनी अलग विशेषताएँ हैं। दोनों के बीच मुख्य अन्तर इस प्रकार हैं
१. तीर्थंकर के तीर्थंकर-नाम-कर्म का उदय होता है; सामान्य केवली के नहीं। २. तीर्थंकर पूर्व-जन्म में दो भव से निश्चित सम्यग्दृष्टि होते हैं; केवली के लिए ऐसा नियम नहीं। ३. तीर्थंकर गर्भ में अवधिज्ञानी होते हैं; केवली के लिए यह नियम नहीं। ४. तीर्थंकर की माता १४ स्वप्न देखती है; केवली की माता के लिए जरूरी नहीं। ५. तीर्थंकर पुरुष होते हैं (तीर्थंकर मल्ली का स्त्री होना आश्चर्य माना गया); केवली स्त्री, पुरुष और कृत
नपुंसक सभी हो सकते हैं। ६. तीर्थंकर स्तनपान नहीं करते; केवली करते हैं। ७. तीर्थंकर दीक्षा से पूर्व नियमित वर्षीदान देते हैं। केवली दे सकते हैं, पर ऐसा नियम नहीं है। ८. तीर्थंकर केवलज्ञान की प्राप्ति से पहले प्रवचन नहीं करते, प्रश्न का उत्तर दे सकते हैं; सामान्य केवली
छद्मस्थ अवस्था में भी उपदेश देते हैं। ९. तीर्थंकर के ५ कल्याणक होते हैं; केवली के नहीं। १०. तीर्थंकर को दीक्षा लेते ही मनःपर्यवज्ञान हो जाता है; केवली को नहीं। ११. तीर्थंकर स्वयंबुद्ध होते हैं; केवली के लिए यह नियम नहीं। १२. तीर्थंकर को दीक्षा के पूर्व लोकान्तिक देव उद्बोधन देते हैं (देवों का जीताचार है); सामान्य केवली के लिए
देव नहीं आते। १३. तीर्थंकर चतुर्विध तीर्थ की स्थापना करते हैं; केवली नहीं। १४. तीर्थंकर का शासन चलता है। सामान्य केवली का नहीं। १५. तीर्थंकर के मुख्य शिष्य गणधर होते हैं; केवली के शिष्य गणधर नहीं होते। १६.. तीर्थंकर के ८ प्रातिहार्य होते हैं; केवनी के नहीं। १७. तीर्थंकर के ३४ अतिशय होते हैं; केवली के नहीं। १८. तीर्थंकर की वाणी के ३५ विशिष्ट गुण होते हैं; केवली के नहीं। १९. तीर्थंकर भव में १, २, ३, ५ और ११वाँ गुणस्थान स्पर्श नहीं करते; केवली ११वाँ छोड़ सभी गुणस्थान का
स्पर्श कर सकते हैं।
पुष्पमाला
चन्द्र
Illustrated Tirthankar Charitra
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सचिव पीर्थकर चरित्र
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