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सिंह
जैन आगमों की मान्यता है कि जो आत्मा विशिष्ट ध्यान-तप आदि की साधना द्वारा तीर्थंकर-नाम-कर्म की पुण्य प्रकृति का बन्ध करता है, उसे ही “तीर्थंकर पद" की प्राप्ति होती है।
एक अवसर्पिणी काल में केवली असंख्य हो सकते हैं, किन्तु तीर्थंकर केवल २४ ही होते हैं। तीर्थंकर चौबीस ही क्यों होते हैं, इसके उत्तर में आचार्य सोमदेव सूरी ने एक समाधान दिया है
नियतं न बहुत्वं चेत्कथमेते तथाविधाः । तिथि-तारा-ग्रहाम्भोधि-भूभृत्प्रभृतयो मताः ॥
-यशस्तिलकचम्पू ८७ यदि वस्तुओं की संख्या नियत न हो तो तिथि, वार, नक्षत्र, तारा, ग्रह, समुद्र, पर्वत आदि नियत क्यों माने गये? अर्थात् जैसे ये बहुत होने पर भी इनकी संख्या नियत है, उसी तरह तीर्थंकरों की संख्या भी प्राकृतिक नियमानुसार नियत है। एक अवसर्पिणी काल में ये चौबीस तीर्थंकर धर्म के पुरस्कर्ता, संघ के संस्थापक और दिव्य अतिशय सम्पन्न होते हैं। . .
तीर्थंकर परमात्मा का अवतार नहीं होते हैं, किन्तु एक सामान्य आत्मा की भाँति जन्म धारण कर विशिष्ट तप-ध्यान-समभाव आदि की साधना द्वारा तीर्थंकर पद प्राप्त करते हैं। इसलिए जैन धर्म में तीर्थंकर को “अवतार" नहीं कहा जाता, किन्तु वह आत्मा का परम विशुद्ध विकसित रूप है। अतः उन्हें "शरीरधारी परमात्मा" कह सकते हैं। . हम जिस वर्तमान अवसर्पिणी काल में अभी रह रहे हैं, इस काल में भगवान ऋषभदेव से भगवान महावीर तक २४ तीर्थंकर हो चुके हैं। जिनके नाम इस प्रकार हैं
गज.
लक्ष्मी
पुष्पमाला
१. भगवान ऋषभदेव २. भगवान अजितनाथ ३. भगवान संभवनाथ ४. भगवान अभिनन्दन ५. भगवान सुमतिनाथ ६. भगवान पद्मप्रभ ७. भगवान सुपार्श्वनाथ ८. भगवान चन्द्रप्रभ
९. भगवान सुविधिनाथ १०. भगवान शीतलनाथ ११. भगवान श्रेयांसनाथ १२. भगवान वासुपूज्य १३. भगवान विमलनाथ १४. भगवान अनन्तनाथ १५. भगवान धर्मनाथ १६. भगवान शान्तिनाथ
१७. भगवान कुंथुनाथ १८. भगवान अरनाथ १९. भगवान मल्लीनाथ २०. भगवान मुनिसुव्रत २१. भगवान नमिनाथ २२. भगवान अरिष्टनेमि २३. भगवान पार्श्वनाथ २४. भगवान महावीर
चन्द्र
Illustrated Tirthankar Charitra
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२० )
सचित्र तीर्थकर चरित्र
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