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________________ ध्वजा पद्य तीर्थंकर कहने लगा। उसने एक बार क्रोध आवेश में आकर भगवान महावीर को भस्म करने का दुस्साहस भी किया, किन्तु तीर्थंकर की महान् अतिशायिनी शक्ति के समक्ष वह परास्त ही रहा। किन्तु क्षमावीर महावीर ने फिर भी गौशालक को आत्म-शुद्धि करने की प्रेरणा दी। परिनिर्वाण __ भगवान महावीर ने जीवन के अंतिम ७२वें वर्ष में पावापुरी (आपापापुरी) के राजा हस्तिपाल की प्रार्थना स्वीकार कर वहाँ चातुर्मास किया, वही उनके जीवन का अन्तिम चातुर्मास था। चातुर्मास काल के साढ़े तीन मास लगभग बीत जाने पर भगवान महावीर ने देखा कि अब देह त्यागकर निर्वाण का समय निकट आ गया है। गणधर गौतम का महावीर के प्रति अत्यधिक अनुराग था। निर्वाण के समय पर गौतम अत्यधिक रागग्रस्त न हों, इस कारण भगवान महावीर ने कार्तिक अमावस्या के दिन उन्हें अपने से कुछ दूर सोम शर्मा नामक ब्राह्मण को प्रतिबोध देने के लिए भेज दिया। ____ कार्तिक अमावस्या के दिन भगवान ने छट्ठ भक्त-दो दिन का, उपवास किया। समवसरण में विराजकर १६ प्रहर तक जनता को अपना अन्तिम उपदेश दिया। जो उत्तराध्ययन सूत्र, विपाक सूत्र आदि के रूप में प्रसिद्ध है। कार्तिक अमावस्या की मध्य रात्रि के पूर्व ही भगवान महावीर ने समस्त कर्मों का क्षय कर देह त्यागकर निर्वाण प्राप्त किया। कुछ क्षणों के लिए समूचे संसार में अंधकार छा गया। देबाताओं ने मणिरत्नों का प्रकाश किया। मनुष्यों ने दीपक जलाकर अंधकार दूर कर भगवान महावीर के अंतिम दर्शन किये। उसी निर्वाण दिवस की स्मृति में दीपमालिका पर्व भगवान महावीर की निर्वाण ज्योति के रूप में "ज्योतिपर्व" की तरह मनाया जाता है। भगवान महावीर के निर्वाण के समाचार सुनते ही मोहग्रस्त गणधर गौतम भाव-विह्वल हो गये। किन्तु फिर शीघ्र ही वे वीतराग चिन्तन में आरूढ़ हो गए। आत्मोन्नति की श्रेणियाँ पार कर उन्हें प्रातःकाल केवलज्ञान उत्पन्न हुआ। देवताओं और मनुष्यों ने एक साथ मिलकर भगवान महावीर का निर्वाण उत्सव और गणधर गौतम का कैवल्य महोत्सव मनाया। भगवान महावीर के निर्वाण के पश्चात् उनके विशाल धर्म संघ का सम्पूर्ण उत्तरदायित्व चतुर्थ गणधर आर्य सुधर्मास्वामी के कंधों पर आ गया। ___ आर्य सुधर्मास्वामी के निर्वाण के पश्चात् उनके शिष्य आर्य जम्बूस्वामी संघ के नायक आचार्य बने। वि. पू. ४०६ में आर्य जम्बूस्वामी का निर्वाण हुआ। आर्य जम्बूस्वामी के निर्वाण के साथ ही भरत क्षेत्र में इस अवसर्पिणी काल में केवलज्ञान परम्परा लुप्त हो गई। सरोवर समुद्र विमान भवन राशि निधूम अग्नि १. ईस्वी पूर्व ५२७ (नवम्बर), विक्रम पूर्व ४७० वर्ष, शक पूर्व ५०६। भगवान महावीर : केवली चर्या ( १६१ ) Bhagavan Mahavir : Kewaii Churya Jain Education International 2010/03 For Private & Personal use only www.jalrnellorary.org
SR No.002582
Book TitleSachitra Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1995
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Story
File Size13 MB
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