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________________ सिंह गज The वृषभ लक्ष्मी चन्द्र ऋषभ सूर्य अजित सम्भव तीर्थंकर काल की उपलब्धियाँ भगवान महावीर का साढ़े बारह वर्षीय साधनाकाल उनके अपने जीवन के लिए वीतराग अरिहंत पद की उपलब्धि का आधार बना, वहाँ केवलज्ञान प्राप्त कर तीर्थंकर बनने के बाद का ३० वर्ष का समय विश्व-कल्याण के लिए समर्पित रहा। इस समय में भगवान महावीर ने युगों से चली आती अनेक रूढ़ धारणाओं को तोड़ा और मानवता के लिए अभिशाप रूप अनेक परम्पराओं में परिवर्तन भी किया । उनके तीर्थंकर काल की लोक-कल्याणकारी महानतम उपलब्धियों को मुख्य रूप में हम इस रूप में देख सकते हैं १. धर्म एवं परलोक कल्याण के नाम पर होने वाले यज्ञों में पशु हिंसा, मानव बलि तथा अज्ञानमूलक क्रियाकांडों का विरोध कर उनको अहिंसा धर्म की ओर अभिमुख किया। अभिनन्दन। २. स्त्री, शूद्र आदि का शास्त्र पढ़ने व धर्म करने के अधिकारों से वंचित थे, उन्हें धर्म दीक्षा दी। सबको शास्त्र पढ़ने एवं धर्म साधना करने का समान अधिकार दिया और अध्यात्म एवं समाज के धरातल पर जातिवादी मूल्यांकन की भावना को निर्मूल किया। ५. भगवा महावीर ने सम्पूर्ण त्याग मार्ग पर बढ़ने वाले श्रमण श्रमणी वर्ग के लिए संयम-जप-तप-ध्यान मार्ग के साथ ही लोक-कल्याण के लिए सतत प्रयत्न करते रहने का भी विधान किया। उनके श्रमण धर्म में इन्द्रभूति गौतम आदि ब्राह्मण वर्ग से, शालिभद्र, धन्ना मुनि जैसे तपस्वी उच्च श्रेष्ठी वैश्य कुल से, मेघकुमार, नन्दिषेण आदि राजकुमार क्षत्रिय कुल से, तो मैतार्य, अर्जुनमाली, हरिकेशबल आदि शूद्र-चांडाल कुल से आकर दीक्षित हुए। इसी प्रकार चन्दनबाला आदि राजकुमारियाँ, मृगावती, काली आदि रानियाँ, सुभद्रा, रेवती पुष्पमाला आदि श्रेष्ठी कुलोत्पन्न नारियाँ भी दीक्षित हुई । ३. जाति, धन, सत्ता एवं बाह्य वैभव के आधार पर बँटे मानवीय मूल्यों को, सत्कर्म की श्रेष्ठता के आधार पर स्थापित किया। ४. गिने-चुने विद्वानों की मान्य संस्कृत भाषा के स्थान पर लोक भाषा और लोक संस्कृति को महत्त्व देकर लोक भाषा में, रुचिकर लोक शैली में प्रवचन करके सभी शास्त्रों को लोक भाषा अर्द्ध-मागधी में निरूपित किया। सुमति Illustrated Tirthankar Charitra विमल ६. उनके श्रावक वर्ग में उदायी, श्रेणिक, अजातशत्रु आदि क्षत्रिय राजा थे, आनन्द जैसे बड़े कृषि कार्य करने वाले (पटेल) सद्दालपुत्र जैसे कुंभकार और सुलस जैसे (कौलशीकरिक कसाई पुत्र) भी सम्मिलित थे । ७. भगवान महावीर का धर्म संघ पूर्णतः त्याग, समता, ज्ञान और संयम की श्रेष्ठता के आधार पर स्थित था। al 2010-03 पद्मप्रभ ८. भगवान महावीर ने आचार धर्म के रूप में अहिंसा, समता और विचार शुद्धि के लिए अनेकान्तविचार शैली का अनूठा दर्शन दिया। ९. भगवान महावीर के लाखों अनुयायी भक्त और करोड़ों प्रशंसक थे, वहाँ गौशालक जैसे विरोधी और जमालि जैसे विद्रोही भी पैदा हुए। गौशालक ५-६ वर्ष तक भगवान महावीर के साथ शिष्य रूप में रहा, किन्तु अन्त में वह महत्त्वाकांक्षा और लोक पूजा का शिकार होकर उनका विरोधी बन गया। स्वयं को सर्वज्ञ तथा ( १६० ) सचित्र तीर्थंकर चरित्र अनन्त धर्म शान्ति For Private & Personal Use Only कुन्धु अर www.jairrelibrary.org
SR No.002582
Book TitleSachitra Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1995
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Story
File Size13 MB
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