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________________ Halwa सुपार्श्व चन्द्रप्रभ सुविधि शीतल श्रेयांस वासुपूज्य D केवली चर्या कुम्भ पद्य केवलज्ञान का आलोक वैशाख शुक्ला दशमी का दिन था। साधनाकाल के बारह वर्ष पाँच मास पन्द्रह दिन व्यतीत हो चुके थे। प्रभु महावीर विहार करते हुए ऋजुबालुका नदी के तट पर एक उद्यान में शाल वृक्ष के नीचे ध्यानावस्थित हुए। उकडू आसन में बैठे वैशाख महीने की कड़ी धूप में भी प्रभु ध्यान की असीम शीतलता अनुभव करते | ध्वजा हुए तन-मन-प्राणों को अकम्प सुस्थिर बनाकर शुक्ल ध्यान में लीन हो रहे थे। चार घनघाति कर्मों के सघन आवरण छटे. कि सहसा केवलज्ञान केवलदर्शन का लोकालोक प्रकाशी भास्कर उदित हो गया। भगवान महावीर अब निश्चय दृष्टि से भगवान, जिन, सर्वज्ञ, सर्वदर्शी बन गये। केवलज्ञान होते ही कुछ क्षणों के लिए, स्वर्ग, नरक और तिर्यक् लोक में शान्त प्रकाश-सा फैल गया। (चित्र M-27/1) प्रथम धर्म देशना साढ़े बारह वर्ष की कठोर सुदीर्घ साधना के पश्चात् श्रमण भगवान वर्द्धमान को केवलज्ञान, केवलदर्शन की प्राप्ति हुई। असंख्य देव-देवी तथा देवेन्द्र धरती पर आये, प्रभु महावीर की वन्दना करके कैवल्य महोत्सव मनाया। सामान्यतः केवलज्ञान की उपलब्धि होते ही तीर्थकर देव समता धर्म (अहिंसा) का प्रथम उपदेश देते हैं। सरोवर प्रभु की प्रथम दिव्य देशना का लाभ लेने के लिए ऋजुबालुका नदी के पावन तट पर ही देवताओं ने समवसरण की रचना की। अगणित देवता प्रभु का अमृत उपदेश सुनने में मग्न हो गये। (चित्र M-27/2) देवता सत्य, संयम, शील के प्रशंसक और उपासक तो हो सकते हैं, परन्तु नियम ग्रहण करके उसकी आराधना नहीं कर पाते। संयम की पात्रता केवल मनुष्य में ही है। इस दृष्टि से यह माना जाता है कि कोई समुद्र भी मनुष्य व्रत ग्रहण का संकल्प नहीं कर सका, इस कारण प्रभु महावीर की प्रथम देशना, फल की दृष्टि के निष्फल ही रही। ऋजुबालुका तट से विहार करके प्रभु महावीर मध्यम पावा पधारे। महसेन वन में दिव्य समवसरण की रचना हुई। (समवसरण का चित्र देखो) विमानइसी वैशाख महीने में सोम शर्मा ने एक विशाल महायज्ञ का आयोजन किया था। इस महायज्ञ में भवन लित होने के लिए भारत के ११ प्रसिद्ध प्रकाण्ड विद्वान अपने ४४०० शिष्यों के साथ उपस्थित हुए हजारों नर-नारी दूर-दूर से यज्ञ की पवित्र ज्योति के दर्शन करने के लिए आ रहे थे। इस प्रकार मध्यम पावा एक धार्मिक तीर्थ बन गया था। __ मध्यम पावा में अचानक ही भगवान महावीर के आगमन की चर्चा सुनी तो पंडित सोम शर्मा चिंतित हो राशि उठा। वह यज्ञ के प्रमुख सूत्रधार महापंडित इन्द्रभूति आदि के पास आया। सभी ने मंत्रणा की कि श्रमण वर्द्धमान महावीर यहाँ यज्ञ विरोधी उपदेश करेंगे तो हमें क्या करना चाहिए? इन्द्रभूति ने कहा-"श्रमण वर्द्धमान अवश्य ही कोई अद्भुत पुरुष हैं। उनके पास साधना का बल है, तप का तेज है, परन्तु फिर भी ज्ञान में वे हमारा मुकाबला नहीं कर सकेंगे। हम अपने प्रखर ज्ञान बल से आज उन्हें परास्त कर देंगे। हमें चिन्तित होने की | निधूम आवश्यकता नहीं है। संभव है आज का यह पवित्र दिन हमारी दिग्विजय का दिन बन जाये।" अग्नि भगवान महावीर : केवली चर्या ( १५७ ) Bhagavan Mahavir : Kewali Charya Jaindidhion-internelione d-on
SR No.002582
Book TitleSachitra Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1995
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Story
File Size13 MB
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