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ध्वजा
सरोवर
था। खेत के पास ही श्रमण महावीर को ध्यानस्थ देखा तो उसने कहा--"बाबा, जरा मेरे बैलों की देखभाल रखना, अभी आता हूँ।" ___ ग्वाला गाँव चला गया, आने में उसे विलम्ब हो गया। बैल चरते-चरते कहीं दूर निकल गये। ग्वाला लौटकर आया तो बैल नहीं मिले, उसने पूछा-“बाबा ! बताओ, मेरे बैल कहाँ चले गये?" । ___ भगवान ध्यान में लीन थे। ग्वाले ने दुवारा पूछा, फिर भी मौन। उसे क्रोध आ गया, खूब जोर से चिल्लाया-“अरे ढोंगी बाबा, क्या तेरे कान फूट गये हैं ? बहरा है ? तुझे कुछ सुनाई देता है कि नहीं?" __ भगवान ने कोई उत्तर नहीं दिया। ग्वाला आग-बबूला हो उठा-“ढोंगी बाबा लगता है, तेरे दोनों कान ही फूट गये हैं। ठहर जरा, अभी तेरा उपचार करता हूँ।" और उसने काँस नामक घास की नुकीली कीलें लीं, आव देखा न ताव श्रमण महावीर के कानों में आर-पार ठोक दीं। (चित्र M-25/1) ।
इस असह्य मर्मघातक वेदना में भी न तो प्रभु ने ध्यान भंग किया और न ही मूर्ख ग्वाले पर द्वेष-भाव आया। ___ यथासमय कायोत्सर्ग पूर्ण करके भगवान गाँव में भिक्षा के लिए विचरण करते हुए सिद्धार्थ नामक एक वणिक के घर पहुँच गये। वणिक के पास उस समय उसका मित्र खरक नाम का वैद्य बैठा था। महाश्रमण को आते देखकर दोनों ने ही भावपूर्वक अभिवादन करके शुद्ध भिक्षान्न दिया।
वैद्य खरक ने सिद्धार्थ से कहा-“मित्र ! इस श्रमण की मुख-मुद्रा पर अत्यन्त तेज ओज दमक रहा है, परन्तु कुछ क्लान्ति-सी भी है। मुझे लगता है कि इस तेजस्वी श्रमण को कोई न कोई अन्तःशल्य खटक रहा है।"
सिद्धार्थ ने खरक वैद्य से कहा-“मित्र ! ऐसे सर्व लक्षण सम्पन्न महापुरुष को कोई अन्तर पीड़ा है तो हमें तुरन्त उसका उपचार करना चाहिए।" ।
भिक्षा लेकर महाश्रमण वापस चले गये। खरक वैद्य अपने विश्वस्त सहायकों को साथ लेकर भगवान के पीछे-पीछे चले। उद्यान में जाकर प्रभु के शरीर का निरीक्षण किया तो उसे कानों में आर-पार चुभी कीलें दिखाई दी। दोनों ने मिलकर कीलें निकालने के साधन जुटाए। शरीर पर तेल आदि की मालिश की और संडासी (कंक-मुख) से खींचकर कानों की कीलें बाहर निकाली। कीलें बाहर निकालते समय भगवान को इतनी मर्मान्तक पीड़ा हुई कि रक्त की धारा वहने लगी। तव खरक वैद्य ने संरोहण औषधि का लेप कर दिया। (चित्र M-25/2) दस महास्वप्न
कहा जाता है-असह्य वेदना की शान्ति होने पर भगवान महावीर को रात्रि के अन्तिम प्रहर में नींद की हल्की-सी झपकी आ गई। कुछ क्षणों की नींद में भगवान ने दस विचित्र स्वप्न देखे।
श्रमण महावीर ने जो स्वप्न देखे उत्पल निमित्तज्ञ ने उनका फलितार्थ इस प्रकार बताया१. स्वप्न : एक ताल पिशाच को पराजित किया।
फल : शीघ्र ही भगवान मोहनीय कर्म का क्षय करेंगे। २. स्वप्न : एक श्वेत पंख वाला पक्षी (पुरकोकिल) सेवा कर रहा है।
फल : शुक्ल ध्यान में लीन रहेंगे। भगवान महावीर : श्रमण-जीवन .
( १३९ ) Bhagaran Mahavir : The Life as an Ascetic
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