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ऋषभ
अजित
सम्भव
अभिनन्दन
सुमति
पद्मप्रभ
वृषभ
की राजधानी थी चम्पा नगरी। यहाँ के शासक थे महाराज दधिवाहन। दधिवाहन की पटरानी धारिणी भी महाराज चेटक की छोटी पुत्री थी। धारिणी की पुत्री थी वसुमती। रूप-गुण-शील का जीवंत रूप थी वह। कौशाम्बीपति शतानीक ने राज्य विस्तार के लोभ में फँसकर चम्पा पर आक्रमण कर दिया। कौशाम्बी की सेना ने चम्पा में घुसकर लूट-पाट की। एक रथ सैनिक ने राजमहलों से रानी धारिणी और राजकुमारी वसुमती को उठा लिया। वह धन से भी अधिक काम-पिपासु था। रानी धारिणी ने अपनी शील-रक्षा के लिए प्राणोत्सर्ग कर दिया। तब रथिक ने सोचा-"कहीं यह कन्या भी माँ के रास्ते न चले", अतः उसने उसको आश्वासन दिया,
और अपनी बेटी मानकर रखा। रथिक की पत्नी धन की लोभी थी। उसके बार-बार कहने पर रथिक ने वसुमती को कौशाम्बी के दासी बाजार में एक लाख स्वर्ण-मुद्रा में नीलाम करने की बोली लगाई। नगर की
एक गणिका ने रूपवती वसुमती को तत्काल एक लाख स्वर्ण-मुद्रा देकर खरीद लिया, किन्तु राजकुमारी बनी गज
दासी वसुमती ने गणिका के साथ जाने से मना कर दिया। गणिका झगड़ा करने लगी। __उसी समय कौशाम्बी के एक कोटिपति धनावह सेठ दुकान से घर जाते हुए उधर आ निकले। बाजार में अजीब भीड़ और यह शोर-शराबा देखकर पूछा-"क्या बात है आज?"
लोगों ने बताया-“सेठ जी ! आज चम्पा नगरी की लटी हई एक दासी बाजार में एक लाख स्वर्ण-मद्रा में बिकने आई है। दासी क्या, यह तो कोई देव-कन्या है, या साक्षात् अप्सरा ! गणिका ने इसे खरीदा है, परन्तु यह उसके साथ जाने से मना कर रही है कोई उच्च कुलीन कन्या लगती है शीलवती रूपवती !"
तत्क्षण सेठ दास-हाट के बीच आकर खड़े हो गये। एक नजर में उसने राजकुमारी को देखा। उसकी आँखों में पानी भर आया। "यह कोई दासी है नहीं ! नहीं ! यह तो साक्षात् देव-कन्या है। ऐसी सुकुमार
शीलवती कन्याओं पर इतना घोर अत्याचार ! गृहलक्ष्मी नारियों की आज यह दुर्दशा !" सेठ का हृदय द्रवित लक्ष्मी
हो उठा। वह निकट आया और वसुमती की ओर मुँह करके बोला-“बेटी ! मेरा नाम धनावह सेठ है ! मैं इस नगर का निर्ग्रन्थ श्रमणोपासक हूँ। तेरी यह दशा देखकर मेरा हृदय टुकड़े-टुकड़े हो गया है। यदि तू गणिका के साथ नहीं जाना चाहती है, तो तेरे साथ जबर्दस्ती नहीं होने दूंगा। मैं एक लाख स्वर्ण-मुद्रा देकर तुझे खरीदूंगा। चलोगी मेरे साथ ? मेरी बेटी बनकर रहोगी ?"
___एक अनाथ राजकुमारी दासी के रूप में बिककर सेठ धनावह के घर आ गई। सेठानी मूला ने इस पुष्पमाला
अनुपम सुन्दरी कन्या को आते देखा तो अनेक कुशंकाओं से उसका माथा ठनक गया। पहले ही क्षण कन्या के रूप में उसे सौत के दर्शन होने लगे।
वसुमती ने कुछ ही दिनों में अपने मधुर व्यवहार के कारण समूचे घर पर जादू-सा कर दिया। सेठ
धनावह उसके स्वभाव की शीतलता को देखकर उसे “चन्दना" कहकर पुकारने लगे। चन्द्र
सेठानी मूला बड़ी शंकालु और ईर्ष्यालु थी। वह चन्दना से मन ही मन जलती थी। एक दिन सेठ धनावह किसी काम से नगर के बाहर गये। मूला के लिए यह सुनहरा अवसर था। उसने घर के सभी दास-दासियों की छुट्टी कर दी। फिर चन्दना को बुलाया, उसके सुन्दर वस्त्र, गहने, कपड़े उतरवा दिये एक फटा-पुराना वस्त्र पहनने को दिया। बेड़ियों से हाथ-पैर बाँध दिये, उस्तरे से उसके काले-काले केश उतार दिए। चन्दना पूछती रही-“माताजी ! यह क्या कर रही हो? क्यों कर रही हो? मैंने तो आपका कुछ भी नहीं बिगाड़ा। मुझे किस अपराध की सजा दे रही हो?" Illustrated Tirthankar Charitra
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सचित्र तीर्थकर चरित्र
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