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________________ सिंह गज से पीटते, जिनके लाल-लाल निशान उनकी चमड़ी पर उभर आते। शरीर पर घाव कर देते, माँस नोंच-नोंच डाल देते, फिर भी महाश्रमण मौन रहते, आँखें भी नहीं खोलते। कुछ लोग उन पर कीचड़ फेंकते, स्त्रियाँ उन पर घर का कूड़ा-कचरा फेंक देतीं, परन्तु महाश्रमण मौन ही रहते तो फिर घर-घूरकर देखने लगतीं। ___ लोग उन्हें देखकर आँखें फाड़-फाड़कर घूरते, गाँव के शिकारी कुत्ते उन पर झपटते, काटने आते, कुछ लोग कुतूहलवश कुत्तों को छूछू करके काटने के लिए दौड़ाते। परन्तु श्रमण वर्द्धमान बोलते नहीं, उनकी तरफ देखते भी नहीं, आँखें नीचे किये अपने पथ पर बढ़ते चले जाते। तब कुछ लोग चिढ़कर गालियाँ देते। भगवान आसन लगाकर ध्यान करते तो लोग उनका आसन भंग करने के लिए उन्हें पकड़ कर पीटते और कपड़े की गठरी की तरह नीचे पटक देते। इस प्रकार अत्यन्त लोमहर्षक उत्पीड़न सहते हुए भी भगवान लगभग पाँच महीने तक उस प्रदेश में विचरते रहे। (चित्र M-19) ___ साधनाकाल के नौवें वर्ष में भगवान ने पुनः अनार्यभूमि में विहार किया और लगभग छह महीने तक उस वज्रभूमि में विचरण करते रहे। अनार्यभूमि में यह प्रथम चातुर्मास खंडहरों में, एवं वृक्षों के नीचे घूमते-घामते पूर्ण किया। गौशालक की प्राण-रक्षा एक समय सिद्धार्थपुर से कूर्मारग्राम के लिए विहार करते हुए प्रभु एक सघन जंगल को पार कर रहे थे। वृषभ कूर्मग्राम के बाहर तापसों का कोई आश्रम था। गौशालक ने देखा-एक तपस्वी सूर्य के सामने दोनों हाथ जोड़कर तपस्या कर रहा है। उसकी लम्बी-लम्बी जटायें वट की शाखाओं की तरह नीचे लटक रही हैं। जटाओं से जुएँ निकलकर भूमि पर गिर रही हैं। धूप के कारण जुएँ अकुलाती हैं तो तपस्वी दया करके अपने हाथ से उन्हें उठाकर वापस जटा में रख लेता है। लक्ष्मी गौशालक इस विचित्र दृश्य को देखकर हँसता रहा। वह तपस्वी के पास आया और बड़े फूहड़ ढंग से बोला-“अरे ओ जुओं के शय्यातर ! तू यह क्या तमाशा कर रहा है?" गौशालक के कटु वचन सुनकर भी तपस्वी शान्त रहा। परन्तु बार-बार चिढ़ाने से तपस्वी का हृदय तिलमिला उठा। आँखों से अंगारे वर्षाते हुए उसने गौशालक की तरफ घूरकर कहा-“दुष्ट, मेरा नाम है वैश्यायन तापस ! ठहर ! तुझे अभी बताता हूँ" और तपस्वी ने सात-आठ कदम पीछे हटकर अत्यन्त क्रोधावेश के साथ मुँह से तेजोलेश्या निकाली। क्षण-भर में ही आग के गुब्बारे की तरह दहकती ज्वाला गौशालक की तरफ आयी, काले धुएँ के बादल उड़ने लगे। गौशालक भयभीत होकर भागा, दूर से ही चिल्लाने लगा-“देवार्य ! बचाओ. बचाओ, यह मुझे जला रहा है। भगवान महावीर ने मुड़कर पीछे की तरफ देखा तो, उनके करुणा द्रवित हृदय से सहज ही शीतल तेजोलेश्या का अमृत झरना फूट पड़ा। ज्यों ही अमिय दृष्टि से | प्रभु ने उधर देखा. दहकती आग का धुआँ शान्त हो गया। गौशालक ने प्रभु के चरणों की शरण ली। ___ क्रोधाविष्ट तपस्वी ने जब अपनी तेजोलेश्या का प्रतिरोध देखा तो वह चकित हो गया-“कौन है यह मुझसे भी अधिक शक्तिशाली ?" तुरन्त ही महाश्रमण वर्द्धमान पर उसकी दृष्टि टिकी। उसने वहीं से नमस्कार किया-"प्रभो ! जान लिया आपकी महान् शक्ति का प्रभाव, जान लिया, क्षमा करें प्रभु ! मुझे नहीं पता था यह आपका शिष्य है।" गौशालक की जान में जान आ गई। उसने पूछा-“देवार्य ! यह जुओं का शय्यातर क्या बकवास कर रहा है ?" एमाला Illustrated Tirthankar Charitra (१३२ ) सचित्र तीर्थकर चरित्र विमल धर्म शान्ति अर अनन्त -- JalLEducation-international -2 E nginemperorl
SR No.002582
Book TitleSachitra Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1995
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Story
File Size13 MB
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