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गज
वृषभ
देवालय था। उसी देहरे के पास में महावीर जाकर खड़े हुए और सूर्य के सामने भुजाएँ सीधी लटकाकर नाक के अग्र भाग पर दृष्टि स्थिर करके ध्यान में लीन हो गये।
कुछ ही देर में फुकारता हुआ विशालकाय कृष्ण नाग अपनी बाँबी से बाहर निकला। अपनी जहरीली लाल आँखों से उसने महावीर को देखा, अग्नि पिंड से जैसे तेज ज्वालाएँ निकलती हैं, वैसी ही उसकी विष बुझी आँखों से जहरीली ज्वालाएँ निकलने लगीं; भयंकर इंकारें करने लगा, परन्तु महावीर पर तो कोई प्रभाव नहीं हुआ।
दूसरी बार पुनः सूर्य के सामने देखकर नाग ने जहरीली तीक्ष्ण दृष्टि महावीर पर टिकाई, फुकारें मारी, परन्तु अब भी स्थिर। ____ क्रोधाविष्ट नागराज ने तीसरी बार भी डंक मारा। जहरीली फंकारें की। परन्तु उसके तीनों आक्रमण निष्फल हो गये। महावीर तो अभी भी बिना हिले-डुले शान्त खड़े थे। नाग आश्चर्य में डूबकर देखने लगा। यह क्या ? जहाँ डंक मारा था, उस अंगूठे से रक्त के स्थान पर श्वेत दूध की धार बह रही है ?
भगवान अविचल खड़े हैं, चेहरा गुलाब जैसा मधुर मुस्कान के साथ खिल रहा है। आँखों से करुणा झर रही है।
नागराज चकित-भ्रमित देखता रहा। विचारों के जाल में उलझ गया। उसका क्रोध निष्फल क्यों होने लगा? - प्रशमरस निमग्न महावीर ने शान्त गंभीर स्वर में उद्बोधन दिया-“उवसम भो चंडकोसिया !" हे नागराज चंडकौशिक ! समझो, समझो। अब शान्त हो जाओ। तुम अपने पूर्व-जन्म का स्मरण करो। बार-बार क्रोध करके जीवन बर्बाद मत करो। क्रोध को शान्त करो। (चित्र M-17)
महावीर की अमृत भरी दृष्टि खुली, नागराज ने अपनी दृष्टि मिलाई, तो जैसे उसके हृदय में अपूर्व शान्ति-सी दौड़ने लगी, सचमुच जहर शान्त होता हुआ प्रतीत हुआ।
चंडकौशिक विचारों में गहरा खो गया, चेतना के पट खुलने लगे, उसे जाति-स्मरण ज्ञान हो गया। ___ पिछले दो जन्मों के चित्र नागराज की स्मृति में उभरने लगे, उग्र क्रोध और अत्यन्त आसक्ति के कारण जीवन में कितना संताप सहा? कितनी दुर्दशा हुई उसकी। विचार करते-करते नागराज का हृदय पश्चात्ताप से पिघलने लगा।
नागराज की अंतश्चेतना जाग गई। मन शान्त हो गया। प्रभु के चरणों का स्पर्श करके नागराज ने संकल्प किया-"प्रभु ! अब मैं जीवन-भर किसी की तरफ दृष्टि उठाकर भी नहीं देगा। न कुछ खाऊँगा। न पीऊँगा। बस, बिल में मुँह डालकर शान्त समाधि की स्थिति में आपके चरणों की छाया में पड़ा रहूँगा। तीन जन्मों के पापों का प्रायश्चित्त कर अब जीवन सुधारूँगा।" - नागराज को शान्त हुआ देखकर आस-पास के गाँवों से स्त्री-पुरुषों के झुण्ड के झुण्ड आने लगे, खीर, दूध चढ़ाकर नाग बाबा की पूजा करने लगे। परन्तु नाग देवता तो अपने बिल में मुँह करके शान्त समाधि लीन थे। उसने मन ही मन अनशन का संकल्प ग्रहण कर लिया। भूख-प्यास, सर्दी की पीड़ा सहता रहा, Illustrated Tirthankar Charitra
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सचित्र तीर्थंकर चरित्र
लक्ष्मी
पुष्पमाला
चन्द्र
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