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ध्वजा
शूलपाणि ने अपना विकराल रूप फैलाया, तीखे दंतशूलों वाला एक मदोन्मत्त हाथी चिंघाड़ता हुआ आया, महावीर पर दाँतों का प्रहार किया, लँड से पकड़कर गेंद की भाँति ऊपर उछाल दिया। पाँवों के नीचे रौंद डाला।
फिर पिशाच का रूप धारण कर तीखे-तीखे नाखून और दाँतों से महावीर के शरीर को नोंचने लगा, अट्टहास करके भयभीत करने का प्रयास किया।
भयंकर काले नाग का रूप धारण कर विष उगलती फूत्कारें की, जहरीले डंक मारे। फिर सिंह, भालू, नेवला, बिच्छू, जंगली छिपकलियाँ आदि भयानक रूप बनाकर अनेक प्रकार के उपसर्ग किये।
अबकी बार शूलपाणि ने एक विचित्र विकुर्वणा की। अपनी वैक्रिय शक्ति से महावीर के आँख, कान, नाक, सिर, दाँत, नख और पीठ इन सात कोमल स्थानों में भयंकर दर्द पैदा किया, ऐसा प्राणहारी असह्य दर्द कि सामान्य मनुष्य तो तड़पता हुआ मृत्यु की गोद में समा जाये। इस प्रकार रात के दो प्रहर तक महावीर को भयानक से भयानक कष्ट देते हुए यक्ष शूलपाणि थक गया, परन्तु महावीर चलित नहीं हुए। (चित्र M-16) ___ सहसा शूलपाणि के हृदय-पटल पर, श्रमण महावीर की दिव्य ध्यान शक्ति का आलोक पड़ा। उसका क्रोध शान्त हो गया। शुभ भाव धारा उमड़ने लगी। उसने हाथ जोड़े, सिर झुकाया, प्रभु के पावन चरणों का स्पर्श पाते ही उसकी बुद्धि का बन्द द्वार खुल गया।
पत ____ “क्षमा करो प्रभु ! मेरा अपराध क्षमा करो। मैंने आपको पहचाना नहीं, क्रोध एवं क्रूरता का काला परदा | सरोवर मेरी बुद्धि पर जो गिर गया था।' शूलपाणि के मुख से पश्चात्ताप की भाषा निकलने लगी।
शान्त रस निमग्न प्रभु के नयन विकसित हुए, वाणी मुखर हई-"शान्त हो जाओ, शूलपाणि ! मन से 5 क्रूरता और घृणा का जहर निकाल दो, तभी तुम्हें शान्ति मिलेगी, अभय मिलेगा। प्रेम से प्रेम मिलता है, क्रोध से क्रोध बढ़ता है। क्रोध की विष बेल को समाप्त करो, सबको अभय दो, तुम भी सदा के लिए अभय हो जाओ।"
भगवान महावीर के उद्बोधक वचनों से शूलपाणि का हृदय सदा-सदा के लिए शान्त हो गया। वर्षावास के साढ़े तीन मास तक यक्ष शूलपाणि भगवान महावीर की सेवा करता रहा।
विमानअमृतयोगी अणगार
भवन शूलपाणि यक्ष के अस्थिकग्राम से प्रस्थान करके श्रमण महावीर श्वेताम्बिका नगरी की तरफ आगे बढ़े। मार्ग में एक भयानक सुनसान वीरान जंगल पड़ता था। ___ कुछ ग्वाल-बाल, जो जंगल में अपनी भेड़-बकरियाँ चरा रहे थे, महावीर को उस सुनसान पथ पर जाते देखा तो खूब जोर से पुकारने लगे-“साधु बाबा, रुक जाना, यह रास्ता बड़ा भयानक है, इस रास्ते पर
राशि दृष्टिविष कालिया नाग रहता है। उसकी जहरीली फुकारों से पेड़-पौधे भी भस्म हो जाते हैं, उड़ते पक्षी तड़फड़ाकर गिर जाते हैं, मनुष्य खड़े-खड़े ही लुढ़क जाते हैं, इधर मत जाना, दूसरे रास्ते जाना बाबा।" ___ ग्वाल-बालों की भय भरी पुकार महावीर के कानों में पड़ी, उन्होंने स्मित भाव के साथ अभय मुद्रा वाला हाथ उठाया। धीर गंभीर गति से चलते हुए महावीर नागराज की बाँबी के निकट पहुँच गये। आस-पास अनेक
निर्धम पशु-पक्षियों व मनुष्यों के कंकाल पड़े थे, वृक्ष सूखकर दूंठ बन गये थे। बाँबी के ठीक पास में उजड़ा-सा भगवान महावीर : श्रमण-जीवन
( १२९ ) Bhagavan Mahavir : The Life as an Ascetic
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