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________________ ध्वजा वासुदेव की आज्ञा का पालन हुआ। भयंकर वेदना से छटपटाते हुए चीखते शय्यापालक के प्राण पखेरू उड़ गये। (चित्र M-3/2) उचित दिशा : प्रियमित्र चक्रवर्ती महाविदेह क्षेत्र में मूकानगरी, धनंजय राजा की धारणी रानी, नयसार का जीव यहाँ राजकुमार के रूप में जन्म लेता है। कुमार का नाम प्रियमित्र रखा गया। अद्भुत शौर्य, पराक्रम के साथ ही कुमार के हृदय में करुणा और संवेग के संस्कार भी जाग्रत हुए। असीम पुण्य बल का स्वामी प्रियमित्र क्रमशः चक्रवर्ती बनता है। पिछले जन्मों के क्रोध, अहंकार आदि के संस्कार क्षीण हो जाने से प्रियमित्र यहाँ पर उदार, विनम्र और दयालु वृत्ति का एक आदर्श चक्रवर्ती शासक कहलाया। छह खण्ड का साम्राज्य प्राप्त होने पर भी प्रियमित्र का हृदय भोगों से विरक्त होने की कामना करता रहता था। ___ एक दिन सम्राट् प्रियमित्र ने पोटिलाधार्य का दर्शन किया, प्रवचन सुना। प्रवचन से अन्तर चेतना में छुपे धार्मिकता और सात्विकता के पवित्र संस्कार जाग उठे। अपने निश्चय में अडिग प्रियमित्र चक्रवर्ती छह खण्ड का विशाल साम्राज्य त्यागकर अकिंचन श्रमण बन गया। प्रियमित्र ने एक कोटि वर्ष तक ध्यान, तप-संयम आदि की उत्कृष्ट आराधना की। यह भगवान महावीर का तेईसवाँ भव था। पोट्टिलाचार्य का शिष्य होने के कारण इनका दूसरा नाम “पोट्टिल" भी प्रसिद्ध हो गया। आयुष्य पूर्णकर प्रियमित्र मुनि महाशुक्र कल्प में देव पद्म हुए। (चित्र M-4/1) सरोवर नन्दन मुनि की अद्भुत साधना महाशुक्र कल्प का आयुष्य पूर्ण होने पर नयसार का जीव भरत क्षेत्र की छत्रानगरी में जितशत्रु राजा की। रानी भद्रा का अंगजात “नन्दन" नाम से प्रसिद्ध होता है। नन्दन राजकुमार के हृदय में बचपन से ही भोग-विलास, रंग-राग, खेल-कूद के प्रति निर्वेद भाव रहता है। रूपवती रानियों का प्रेम और भौतिक सुखों की भरमार भी राजकुमार को संसार में नहीं फँसा सकी। उनके मन में दयालुता और सेवा-भक्ति के विशेष संस्कार जाग्रत होने लगते हैं। आपद्ग्रस्त दीन-जीवों के प्रति उसके मन में करुणा का सागर हिलोरें मारता है। अध्यात्म-ज्ञान, तत्त्व-चिन्तन और सत्य के प्रति उत्कृष्ट जिज्ञासा से वह युवावस्था में गंभीर दार्शनिक जैसे बने रहते हैं। विमान__ नन्दन राजकुमार के मन में भोग से विरक्ति और त्याग के प्रति सहज अभिरुचि होने के कारण वे एक भवन दिन गृह त्यागकर दीक्षा लेते हैं, और कठिन तपश्चरण करके समाधि तथा ध्यान की निर्मलता बढ़ाते हुए देह में ही देहातीत भाव से रहने लगते हैं। नन्दन मुनि एक अद्भुत घोर तपस्वी का जीवन जीते हुए एक लाख वर्ष तक निरन्तर मास-मासखमण की तपस्या करते हैं। अर्थात् पूरे संयम-साधना काल में उन्होंने एक लाख साठ हजार मासखमण तप किये। (चित्र M-4/2) राशि ___ आगमों में अध्यात्म-साधना की उच्चता और उज्ज्वलता के बीस स्थान बताये गये हैं जिनकी उत्कृष्ट आराधना करके कोई भी जीव तीर्थंकर-नाम-कर्म का उपार्जन कर सकता है। नन्दन मुनि भी निरन्तर बार-बार इन पवित्र बीस स्थानकों की आराधना-समाराधना करते रहते हैं और उत्कृष्ट लीनता, तन्मयता, तन्निष्ठा के क्षणों में रमण करते हुए तीर्थकर-नाम-कर्म का बन्ध कर लेते हैं। निर्धूम तपस्वी नन्दन मुनि आयुष्य पूर्णकर प्राणत देवलोक (२६वाँ भव) में महान् ऋद्धि सम्पन्न देव बनते हैं। अग्नि भगवान महावीर : पूर्व-भव ( १०५ ) Bhagavan Mahavir : Past-Incarnation समुद्र randuindiatromimernational -00 - Privane ersonalimose-only mirjarmanorary.org
SR No.002582
Book TitleSachitra Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1995
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Story
File Size13 MB
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