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________________ सिंह वृषभ प्रजापति स्वयं ही सेना लेकर जाने को तैयार हुए तो राजकुमार त्रिपृष्ट ने उन्हें रोका और अपने बड़े भाई के साथ सशस्त्र सैनिकों को लेकर तंगगिरि के शालि धान्यक्षेत्र में आ गये। वहाँ गाँव के किसानों से मिले, और सब जानकारी ली। ___ गाँव वालों ने कुमार को सिंह की गुफा और उसके आने का रास्ता बता दिया। त्रिपृष्ठ कुमार शस्त्रों से सज्जित होकर रथ पर बैठे और चल पड़े। सिंह की गुफा के पास सैनिकों ने हल्ला मचाया, गुफा में सोया सिंह जाग उठा, उसने सामने खड़े मनुष्यों को देखा तो क्रोध में उफनकर दहाड़ता हुआ कुमार की तरफ झपटा, कुमार ने भी सिंह को सामने आते देखा-“अरे ! यह तो पैदल ही दौड़ रहा है, तो मैं फिर रथ पर क्यों चढूँ ? इसके पास तो कोई शस्त्र भी नहीं है, तो फिर मैं शस्त्र से क्यों लडूं? पैदल के साथ पैदल और निःशस्त्र के साथ निःशस्त्र युद्ध होना चाहिए।" यह सोचकर राजकुमार त्रिपृष्ठ रथ से उतर पड़े, शस्त्र फेंक दिये और सिंह के सामने बढ़ गये। बिजली की भाँति झपटकर आते हुए सिंह ने जैसे ही कुमार पर आक्रमण किया-कुमार ने उसका जबड़ा पकड़कर यों चीर डाला जैसे कोई पुराना कपड़ा चीर देते हैं। सिंह की चीखभरी भयंकर दहाड़ से पहाड़ियाँ गूंज उठीं, दूर-दूर खड़े सैनिकों के रोंगटे खड़े हो गये। (चित्र M-2/1) ___ जब घायल सिंह सिसक रहा था, तब वासुदेव के सारथि ने उसे मधुर शब्दों में सान्त्वना दी। जिससे सिंह को शान्ति अनुभव हुई। सारथि के प्रति अनुराग जगा। सारथि का जीव आगे चलकर गणधर गौतम बना और सिंह का जीव एक कृषक। गौतम को देखकर वह कृषक पूर्व अनुरागवश उनका शिष्य बन गया। परन्तु भगवान महावीर को देखकर उसके बद्ध-वैर के संस्कार जाग गये, और वह वापस लौट गया। (चित्र M-2/2) कानों में शीशा त्रिपृष्ठ वासुदेव को संगीत का बहुत शौक था। एक बार संध्या के समय सभा में बैठे थे, मनोरंजन का कार्यक्रम चल रहा था। मधुर संगीत सुनकर वासुदेव त्रिपृष्ठ मुग्ध हो गये। सभी सभासद मंत्र-मुग्ध से संगीत सुनने में लीन थे। सम्राट ने अपने शय्यापालक (शयनागार के परिचारक) से कहा-"मुझे नींद आ जाये तो संगीत बन्द करा देना।" सम्राट् को संगीत सुनते-सुनते ही नींद की नीठी झपकियाँ आने लगीं। (चित्र M-3/1) रात्रि का नीरव शान्त समय, संगीत के उस मधुर मोहक वातावरण में सभी बेभान से थे। सम्राट् का आदेश शय्यापालक को याद नहीं आया, पूरी रात संगीत सभा चलती रही। सम्राट् नींद में लीन थे। उषाकाल होने को आया, तो सम्राट् की आँखें खुली, देखा, संगीत का रंग वैसा ही जमा हुआ है। सभी संगीत की मस्ती में झूम रहे हैं। त्रिपृष्ठ वासुदेव को क्रोध आ गया, शय्यापालक को डाँटते हुए कहा-“मैंने कहा था, मुझे नींद आने लगे तो संगीत बन्द करा देना। तुमने क्यों नहीं किया?" शय्यापालक ने घिधियाते हुए निवेदन किया"महाराज ! भूल हो गई, संगीत के आनन्द की वर्षा हो रही थी, सो बन्द कराना भूल गया।" आज्ञा-भंग होने पर त्रिपृष्ठ वासुदेव का क्रोध बढ़ गया। वे शय्यापालक की ढीठता पर आग-बबूला हो उठे। अपने सेवकों से कहा-'इसको संगीत बहुत प्रिय है न? अपने स्वामी की आज्ञा से भी ज्यादा इसके कानों को संगीत अच्छा लगता है, तो जाओ, शीशा उबालकर इसके दोनों कानों में डाल दो। आज्ञा को अवहेलना करने का यही दण्ड दो इसे।" लक्ष्मी पुष्पमाला चन्द्र Illustrated Tirthankar Charitra ( १०४ ) सचित्र तीर्थंकर चरित्र Lain-Education-international-40-00
SR No.002582
Book TitleSachitra Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1995
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Story
File Size13 MB
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