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चन्द्रप्रभ
| सुविधि
२४. भगवान महावीर
पूर्व-भव
भगवान महावीर जैन धर्म के चौबीसवें ( चरम - अंतिम) तीर्थंकर थे। उनका व्यक्तित्व सम्पूर्ण विकसित ध्वजा व्यक्तित्व था। उस व्यक्तित्व में आत्मा की अनन्त आभा देदीप्यमान थी । आत्मा के समस्त गुण, समस्त शक्तियाँ सम्पूर्ण रूप में जाग्रत हो चुकी थीं। वे अनन्त बली थे तो अनन्त करुणामय भी थे। सम्पूर्ण आत्म-बल जाग्रत हो जाने से वे देव-दानवों से भी अपराजेय थे। इस प्रकार एक अखण्ड अपराजेय और सम्पूर्ण विकसित मानवीय व्यक्तित्व था तीर्थंकर महावीर का। उन्होंने पूर्व जन्मों में तप-संयम आदि की दीर्घकालीन साधना द्वारा आत्मा को तीर्थंकर या अरिहंत पद के योग्य बनाया। इस दृष्टि से भगवान महावीर के पूर्व जन्मों की घटनाएँ अति महत्त्वपूर्ण हैं। सबसे पहली घटना है प्रथम बोधि लाभ ।
शीतल
प्रथम बोधि लाभ की घटना वर्द्धमान महावीर के वर्तमान जन्म से २६ जन्म पूर्व अर्थात् सत्ताईसवें भव की है। नयसार ग्राम चिन्तक के जन्म की कथा इस प्रकार है
प्रथम बोधि लाभ : नयसार
अपर महाविदेह की जयन्ती नगरी में एक राजा थे शत्रुमर्धन । राज्य के चारों ओर घने जंगल और हरीभरी पहाड़ियाँ थीं, जिनकी रखवाली का काम करता था - नयसार । नयसार ग्रामचिन्तक (मुखिया) के पद से सम्मानित था ।
एक बार राजभवन का निर्माण करने के लिए अच्छे काष्ठ की आवश्यकता हुई राजा ने नयसार को जंगल से इमारती लकड़ियाँ लाने का आदेश दिया। नयसार सैकड़ों कर्मचारियों को साथ लेकर जंगल से लकड़ियाँ काटकर लाने में जुट गया। मध्यान्ह के समय धूप तेज हो जाने पर वह भोजन के लिए एक वृक्ष की छाया में बैठ गया। परन्तु उसका ध्यान भोजन की तरफ नहीं था। वह मन ही मन कुछ सोच रहा था कि दूर पहाड़ की तलहटी में कुछ श्रमण आते हुए दिखायी दिये। नयसार उठा, श्रमणों के आने की दिशा में कुछ दूर पहुँचा, श्रमण भी उधर ही आ रहे थे, नयसार ने श्रमणों को नमस्कार किया।
मल्लि
मुनिजन प्रचण्ड धूप से बहुत थक चुके थे, मारे प्यास के गला भी सूख रहा था । धीमे स्वर में बोले"भाई ! इस अटवी में रास्ता भूल गये, सुबह से अब तक चल ही रहे हैं।”
श्रेयांस
नयसार मुनियों को अपने साथ वृक्ष की शीतल छाया में ले आया। कुछ देर विश्राम कर लेने के बाद उसने कहा-"महाराज ! मेरे लिए आया हुआ शुद्ध भोजन तैयार है। घड़े में ठण्डा मीठा मठा (छाछ) भरा रखा है। कृपया कुछ भिक्षा ग्रहण कर मुझे कृतार्थ कीजिए | "
मुनियों ने नयसार की विनम्र और पवित्र भावना देखकर शुद्ध प्रासुक भोजन ग्रहण कर लिया। नयसार के हृदय का कण-कण पुलक उठा।
मुनिसुव्रत नमि
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वासुपूज्य
कुछ समय विश्राम करके मुनियों ने उसे दया, अनुकम्पा, सरलता, विनम्रता और समताभाव का आचरण करने के लिए सरल और व्यावहारिक उपाय बताये।
भगवान महावीर : पूर्व-भव
( १०१ )
By Jeand
| अरिष्टनेमि
Bhagavan Mahavir: Past-Incarnation
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