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सुपार्श्व
चन्द्रप्रभ
सुविधि
शीतल
|श्रेयांस
वासुपूज्य
ध्वजा
कुम्भ
पद्म सरोवर
हाथियों का यूथपति ___मरुभूति का जीव मरकर एक जंगल में हाथियों का यूथपति बन गया। क्रोध और आवेग की भावनाओं से जलता हुआ कमठ भी मरकर एक भयंकर विषधर कुर्कुट जाति का उड़ना सर्प बना। एक दिन जंगल में घूमते हुए हाथी को एक मुनि के दर्शन हुए। मुनि का उपदेश सुनकर हाथी को पूर्व-जन्म का ज्ञान हो गया। हाथी ने अपना जन्म सुधारने के लिए खाना-पीना कम कर दिया और शान्तिपूर्वक जीवन बिताने लगा। ___ एक दिन दुर्बल कृशकाय हाथी एक दलदल में फँस गया। शरीर की शक्ति क्षीण हो जाने से निकल नहीं सका। दलदल में ही रात-दिन फँसा खड़ा रहा। तभी कुर्कुट सर्प उधर आया। उसने हाथी को देखा तो पूर्व-जन्म का वैर जाग उठा। अपने जहरीले डंकों से उसने हाथी को घायल कर दिया। परन्तु हाथी ने समभावपूर्वक उस वेदना को सहन किया। (चित्र P-1/2) सुवर्णबाहु चक्रवर्ती
इस प्रकार अनेक जन्मों में मरुभूति के साथ कमठ अपने वैर का बदला लेने की दुर्भावना से उसे पीड़ाएँ देता रहा। उसकी हत्या करता रहा। परन्तु मरुभूति का जीव सदा ही क्षमा और समतापूर्वक उन पीड़ाओं को सहन करता रहा।
आठवें जन्म में मरुभूति का जीव (पार्श्वनाथ की आत्मा) सुवर्णबाहु नाम का चक्रवर्ती सम्राट् हुआ। फिर चक्रवर्ती का वैभव त्यागकर मुनि दीक्षा ग्रहण की और घोर तप-ध्यान, अरिहंत-सिद्ध-भक्ति करते हुए बीस स्थानकों की आराधना करके तीर्थंकर-नाम-कर्म का उपार्जन किया।
एक बार मुनि सुवर्णबाहु क्षीरगिरि के वन में ध्यान करके खड़े थे कि कमठ का जीव, जो वन में सिंह बना था, उसने मुनि को देखते ही क्रोधावेश में आकर उन पर झपट मारी। अत्यन्त समभावों के साथ मुनि ने प्राण त्यागे। प्राणत देवलोक में देव बने।
प्राणत देवलोक से च्यवकर इस महान् भाग्यशाली आत्मा ने माता वामादेवी की कुक्षि से जन्म लिया।
पुत्र जन्मोत्सव के समय राजा अश्वसेन ने बताया कि-"एक अँधेरी रात में रानी वामादेवी ने मेरे पार्श्व में चलते नाग को देखकर मुझे सूचित किया और मेरी रक्षा की, इसलिए बालक का नाम पार्श्वकुमार रखना चाहिए।"
पार्श्वकुमार बचपन से ही अत्यन्त प्रतिभाशाली और जागरूक बुद्धि के थे। साथ ही अमित पराक्रमी भी थे। एक बार कुशस्थलपुर के राजा का दूत महाराज अश्वसेन के पास आया और निवेदन किया-"महाराज ! हमारे राजा प्रसेनजित की एक रूपवती कन्या है, प्रभावती ! राजकुमारी ने पार्श्वकुमार के अनुपम गुणों की कीर्ति सुनकर उनके सिवाय अन्य पुरुष का वरण नहीं करने की प्रतिज्ञा ले ली है। किन्तु हमारा पड़ोसी कलिंग देश का यवनराज राजकुमारी के सौन्दर्य पर आसक्त हो गया है, और उसने धमकी दी है कि या तो मुझे राजकुमारी दो, अन्यथा युद्ध के लिए तैयार हो जाओ। यवनराज ने अपनी विशाल सेना के साथ हमारे नगर को चारों दिशा से घेर लिया है। इसलिए अब आप हमारी सहायता कीजिए।" ___महाराज अश्वसेन न्याय और नीति के परम पक्षधर थे। उन्होंने तुरंत ही कुशस्थलपुर की रक्षा के लिए सेना को सज्ज होने का आदेश दिया और स्वयं भी युद्ध के लिए तैयार हुए। पार्श्वकुमार ने पिताश्री से कहाभगवान पार्श्वनाथ
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Bhagavan Parshvanath
समुद्र
विमानभवन
रत्न राशि
निधूम अग्नि
मल्लि
मुनिसुव्रत
नमि
अरिष्टनेमि
पार्श्व
महावीर
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