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ऋषभ
अजित
सम्भव
अभिनन्दन
सुमति
पद्मप्रभ
सिंह
वृषभ
नहीं है, जो उनके दिव्य शस्त्रों को छू भी सके, अतः अरिष्टनेमि के बल की पुनः परीक्षा लेने के लिए उन्होंने कहा-“कुमार ! चलो, व्यायामशाला में आओ, आज परीक्षा करेंगे, कौन अधिक बलवान और पराक्रमी है?" अरिष्टनेमि ने मुस्कराकर कहा-“भैया ! जैसी आपकी इच्छा !'
श्रीकृष्ण ने अपनी विशाल दाहिनी भुजा फैलाकर कहा-"कुमार ! देखें, क्या आप इसे झुका सकते हैं ?' कुमार अरिष्टनेमि ने कहा-"हाँ", और सहज ही झूमकर उसे एकदम झुका दिया। फिर अरिष्टनेमि ने अपनी भुजा फैलाई और श्रीकृष्ण उस पर झूमने लगे। वासुदेव श्रीकृष्ण ने दोनों हाथों से पूरा बल लगाकर झुकाने की चेष्टा की, परन्तु नेमिकुमार का प्रचण्ड भुजदण्डक झुक नहीं सका। (चित्र AN-2/अ) ___ अपने लघु भ्राता का अद्वितीय बल पराक्रम देखकर वासुदेव श्रीकृष्ण अत्यन्त हर्ष-विभोर हो गये। एक बार उनके मन में आया-यह अवश्य ही षट्खण्ड चक्रवर्ती सम्राट् बनेगा, परन्तु फिर वे उनकी विरक्ति और आजीवन ब्रह्मचारी रहने की भावना जानकर खिन्न हो गये। श्रीकृष्ण ने सोचा-किसी प्रकार इसे विवाह के लिए सहमत करना चाहिए। विवाह के बन्धन में बँधते ही भोगों के प्रति इसकी अनुरक्ति बढ़ेगी और फिर यह संयम की बात भूल जायेगा। श्रीकृष्ण की इस योजना को सफल बनाने की जिम्मेदारी ली सत्यभामा आदि रानियों ने। ___एक दिन वसन्त ऋतु में रानियों ने मिलकर अपने प्यारे देवर नेमिकुमार को फाग खेलने के लिए बगीचे में बुला वहाँ हँसी-मजाक के साथ सरोवर में जल-क्रीड़ा करते हुए भाभियों ने देवरानी लाने के लिये नेमिकुमार को मजबूर कर दिया। (चित्र AN-2/ब)
पिता-माता, भाई श्रीकृष्ण आदि सबका अत्यधिक आग्रह देखकर नेमिकुमार विवाह के लिए मौन रहे, तब श्रीकृष्ण ने उनके लिए परम सुन्दरी राजकन्या की खोज चालू की। सत्यभामा ने बताया-“मेरी छोटी बहिन राजुल बहुत ही सुन्दर सुकुमारी है। अपने नेमिकुमार की जोड़ी बहुत अच्छी सजेगी।" श्रीकृष्ण ने राजा उग्रसेन से नेमिकुमार के लिए राजुल की मँगनी की और शुभ-मुहूर्त पर यादवों की विशाल बारात प्रस्थित हुई। नगर के समीप पहुँचने पर वर रूप में सजे गजारूढ़ नेमिकुमार के कानों में पक्षियों व पशुओं का करुण क्रन्दन सुनाई पड़ा-“विवाह के शुभ मंगल प्रसंग पर यह करुण क्रन्दन किसका है?" नेमिकुमार ने अपने मजवाहक सारथि से पूछा ! तब तक हाथी आगे पहुँच चुका था। नेमिकुमार ने देखा, एक बड़े बाड़े में अनेक जाति के
मूक पशु-पक्षी बन्द हैं, और वे तरह-तरह की चीत्कारें, क्रन्दन करके वहाँ से मुक्त होने के लिए छटपटा रहे पुष्पमाला
हैं। (चित्र AN-3/अ)
सारथि ने बताया-"कुमार ! बारात में आये मेहमानों के भोजन के लिए इन पशुओं का वध किया जायेगा। मृत्यु को अपने सामने नाचते देखकर ये भय से करुण क्रन्दन कर रहे हैं।"
नेमिकुमार का दयालु हृदय द्रवित हो उठा। “मेरे कारण इतने निरीह जीवों की हत्या ? पंचेन्द्रिय प्राणियों चन्द्र
का वध ! नहीं ! नहीं ! यह मेरे लिए श्रेयस्कर नहीं है।" उन्होंने तुरंत सारथि को निर्णायक आदेश दिया-“सारथि ! रुको ! और इन बाड़ों में बन्द सभी पशुओं को मुक्त कर दो।" चकित हुआ सारथि कुमार की तरफ देखता रहा, कुमार ने कहा-“मेरा आदेश है, जाओ ! और पशु-पक्षियों को बन्धन मुक्त करो।"
सारथि ने जैसे ही बाड़े का द्वार खोला, फुदकते-उछलते पशु-पक्षी हर्ष प्रकट करते हुए बाहर निकलकर सूर्य
भागे। मृत्यु के मुँह में जाते-जाते उन्हें जीवनदान मिल गया। (चित्र AN-3/ब) Illustrated Tirthankar Charitra
सचित्र तीर्थंकर चरित्र
लक्ष्मी
विमल
अनन्त
धर्म
शान्ति
कुन्थ
Jaimmediercretion-internationa
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ཁ་ག་དེ
བ ་བཅས་ཁམས་བསམ་པ་དགེ་
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