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अपम (0) अजित() सम्बक) अभिनन्दन (1) सुमति ) पशम (1)
The tenth Chakravarti Harishen was his contemporary and the eleventh Chakravarti Jai came in his religious tradition, though much later.
सिंह
२२.भगवान अरिष्टनेमि
गज
वृषभ
लक्ष्मी
भगवान अरिष्टनेमि का जीव पूर्व-भव में "शंख" नाम का राजा था। राजा शंख जितने अद्भुत पराक्रमी वीर थे, उतने ही अधिक दयालु भी थे। जब वे राजकुमार थे तब एक बार उनके राज्य में दस्यु तस्करों का आतंक फैल गया। निरपराध पथिकों को लूटना और उनकी निर्मम हत्या करना, इन तस्करों का धंधा था। राज्य की प्रजा ने राजा श्रीषेण के पास रक्षा की पुकार की, तो राजा ने उन दस्यु तस्करों को पकड़ने के लिये सेना को सज्ज होने का आदेश दिया। तब राजकुमार शंख ने स्वयं दस्युओं को पकड़कर आतंक समाप्त करने की जिम्मेदारी ली और अपनी कुशल रणनीति तथा पराक्रम से खून-खराबा किये बिना ही लुटेरे पल्लीपति को पकड़कर पिता के सन्मुख बन्दी बनाकर ले आये। मार्ग में ही उन्हें एक विद्याधर से भी युद्ध करना पड़ा। वह विद्याधर यशोमती नाम की किसी सुन्दरी कन्या का अपहरण करके ले जा रहा था। सुन्दरी की करुण पुकार पर शंखकुमार ने विद्याधर से युद्ध करके यशोमती को मुक्त कराया। यशोमती के मन में कुमार के प्रति सहज अनुराग जाग उठा। शंखकुमार ने भी यशोमती को देखा तो उनका मन भी स्नेहसिक्त हो गया। यशोमती का शंखकुमार के साथ पाणिग्रहण हो गया।
एक बार शंख राजा ने एक ज्ञानी मुनि से पूछा-"यशोमती के प्रति मेरे मन में इतना गहरा अनुराग क्यों है कि मैं चाहकर भी उसको त्यागकर मुनि-दीक्षा नहीं ले पा रहा हूँ ?" ज्ञानी संत ने बताया-"पिछले छह जन्मों से तुम परस्पर पति-पत्नी के रूप में जन्म लेते रहे हो। यह सातवाँ भव है। इस प्रगाढ़ प्रेम सम्बन्ध के कारण ही यशोमती तुम्हें देखते ही अनुरक्त हो गई थी।"
राजा ने पूछा-“यह प्रगाढ़ प्रेम बंधन कब टूटेगा?"
ज्ञानी मुनि ने उत्तर दिया-"इसके एक जन्म बाद नौवें जन्म में तुम नेमिनाथ के रूप में और यह राजीमती के रूप में जन्म लेगी। उसी भव में नौ जन्मों की पुरानी प्रीति तोड़कर तुम बाईसवें तीर्थंकर नेमिनाथ बनोगे। राजीमती भी तुम्हारा अनुगमन करके दीक्षा लेगी और मोक्ष प्राप्त करेगी।" ___ अपने विषय में यह सब-कुछ जानकर शंख राजा का मन विरक्त हो गया। पुत्र को राज्य-भार सौंपकर दीक्षा ले ली। अरिहंत. सिद्ध, साध आदि की उत्कष्ट भक्ति करते हुए तीर्थंकर-नाम-कर्म का उपार्जन किया। अरिष्टनेमि के रूप में जन्म ___ महाराज शंख का जीव अपराजित विमान में अहमिन्द्र का आयुष्य पूर्णकर हरिवंश के प्रतापी राजा सौरीपुर-नरेश महाराज समुद्रविजय की रानी शिवादेवी के गर्भ में आया। १४ महा शुभ स्वप्नों की सूचना से सभी ने यह जान लिया कि हरिवंश में भावी धर्म चक्रवर्ती तीर्थंकर का जन्म होने वाला है। श्रावण शुक्ला Illustrated Tirthankar Charitra
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सचित्र तीर्थंकर चरित्र
| पुष्पमाला
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