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[ ३४७ ] बिम्बादि की अर्चना करना-कोकोतर मिथ्यात्व है।' मिथ्यादृष्टि को तस्व श्रद्धान से सम्यक्त्व को प्राप्ति हो जाने से मिथ्यात्व का व्यवच्छेद हो पाता है। भगवान महावीर के पास जमाली दीक्षित हुआ लेकिन विपरीत अभिनिवेश के कारण अपने जीवन को सम्यग प्रकार से सुधार न सका। कहा है
मइभेएण जमाली, पुत्विं वुग्गाहिएण गोविंदो, . संसग्गीए भिक्खू, गोट्ठामाहिलअहिणिवेसे।
____ --व्यवहार भाष्य अर्थात् जमाली में मतिभेद-अभिनिवेश मिथ्यात्व परिणत हो गया था। भगवान के द्वारा प्ररुपित किसी सिद्धान्त में मतभेद हो पाने के कारण उसे जिन शासन छोड़ पड़ा । भगवान महावीर के शासन में सात निह्वव हुए। उसमें से प्रथम निववाद का प्रवर्तक जमालो था । यद्यपि उसने सद् अनुष्ठानिक क्रियाओं का पालन कर तीसरे किल्विषी में उत्पन्न हुआ लेकिन पूर्ण रूप से आराधक पद की प्राप्ति नहीं कर सका।
व्यवहार नय की एकान्त दृष्टि को लेकर जमाली भगवान महावीर के मत को मिथ्या समझता है। उसका कहना है--"क्रियमाण कृत नहीं हो सकता" जब कि भगवान ने क्रियमाण को कृत कहा है। · तथापि जमालो शुक्ल पाक्षिक व परीत्त संसारी है । कहा है
सम्यग्दृष्टिव्यतिरिक्तानां सर्वथा निर्जरा नास्त्येव ? काचिदस्तिवा इति ? प्रश्ने, उत्तरम्-सम्यग्दृष्टिव्यतिरिक्तानां जीवानां सर्वथानिर्जरा नास्त्येव इति वक्तु न शक्यते ।
"अणुकंपऽकामनिज्जर, बालतवे दाणविणयविभंगे।
संयोगविप्पओगे, वसूणसवइढिसक्कारे ॥१॥" (१) मिथ्यात्वं च लौकिकलोकोत्तरभेदाद्विधा।
-अभिधा भाग । पृ०२७२ (२) सम्म हिट्ठीजीवो, उवट्ठपवयणं तु सद्दहइ । सदहइ असब्भावं, अणभोगा गुरुणिसोगा वा।
-उत्त. नियुक्ति
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