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[ ३३३ । समय में आराधना की विराधना करने से उत्कृष्टता अनन्त संसार की प्राप्ति होती है। आगम-साहित्य में ऐसे अनेक उदाहरण हैं कि मिथ्यात्वी देश आराधना के द्वारा भी एक अथवा दो-अथवा तीन या इससे अधिक भवकर के मोक्ष प्राप्त किया है, करेंगे। शिवकोटि आचार्य ने कहा है --
दिट्ठा अणादिमिच्छादिट्ठी जहमा खणेण सिद्धा य । आराहया चरित्तस्स तेण आराहणा सारो।
-भगवती आराधना १ । १५ आशा टीका-अणाइमिच्छाइट्ठी अनादिकालं मिथ्यात्वोदयो ट्रेकान्नित्यनिगोदपर्यायमनुभूय भरतचक्रिणः पुत्रा भूत्वा भद्रविवर्द्धनाद. यस्त्रयोविंशत्यधिकनवशतसंख्याः पुरुदेववादमूले श्रुतधर्मसाराःसमारो पितरत्नत्रयाः खणेण अल्पकाले नैव सिद्धा य सिद्धाः संप्राप्तानंत ज्ञानादिस्वभावाश्चशब्दान्निरस्तद्रव्यभावकमसंहतयश्च। चरित्तस्स रत्नत्रयस्य तेण तेन कारणेन आराहणा आयुरन्ते रत्नत्रयपरिणति सारो सर्वाचरणानां परमाचरणम् ।
अर्थात् चारित्र की बाराधना करने वाले अनादि मियादृष्टि जीव भी अल्प-काल में संपूर्ण कर्मों का नाशकरके मुक्त हो गये हैं ---ऐसा देखा गया है अत: जीवों को आराधना का अपूर्व फल मिलता है।
अनादि काल से मिथ्यात्व का तीव्र उदय होने से अनादि काल पर्यत जिन्होंने नित्य निगोद पर्याय का अनुभव किया था ऐसे ९२३ जीव निगोद पर्याय छोड़कर भरत चक्रवर्ती के भद्रविवर्धनादि नाम धारक पुत्र उत्पन्न हुए थे। उनको आदिनाथ भगवान के समवसरण में द्वादशांग वाणी का सार सुनने से वैराग्य हो गया। वे राज पुत्र इस ही भव में त्रसपर्याय को प्राप्त हुए थे। इन्होंने जिन दीक्षा लेकर रस्लत्रयाराधना से अल्पकाल में ही मोक्ष लाभ लिया। अर्थात् मरण समय में इन्होंने रत्नत्रय की विराधना नहीं की अतः उनको आराधना का उत्कृष्ट फल-मोक्ष प्राप्त हुआ। ऐसे अनादि मिलादृष्टियों का भी रत्नत्रय से सर्व कर्म नष्ट होता है व अनंत-बानादि रूप सिद्धत्व प्राप्त होता है।
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