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[ ३३० ] से पत्तों के गिरने से तथा फुभिपाक (घड़े के आकार जैसे पात्र में पकना) बादि से जीव बड़ा भारी दुःख पाते है। राग किंवा द्वेष वल जो पुरुष अपनी हत्या करते हैं वे पाप से विमोहित बुद्धि वाले संसार रूपी अरण्य में भटका करते है। अतः मिथ्यात्वी आत्म हत्या न करे।
विश्वावसु का शिखी नामक पुत्र सुकृति के कारण चमरकुमार का भवनाधिपति देव हुआ। अतः मिथ्यात्वी की भी सुकृति निष्फल नहीं पाती। ध्यान दीपिका में उपाध्याय सकलचंद्रजी ने कहा है
जीवो ह्यनादिमलिनो मोहांधोऽयं च हेतुना येन । शुध्यति तत्तस्य हितं तच्च तपस्तच्च विज्ञानम् ॥
-ध्यान दीपिका १।४ अर्थात अनादि काल मलिन और मोहांध इस जीव की तप और विज्ञान से शुद्धि होती है । ये वस्तुएं आत्मा के हित की साधन हैं । देखा जाता है कि गर्भ में स्थित जीव भी मर जाते है यह मिथ्यात्व में कृत कर्मों का फल है। मिथ्यात्वी माया-कपट से अनंत काल संसार-भ्रमण कर सकता है--माया से दूर रहे । श्रीमद् यशोविजयजी उपाध्याय ने कहा है
नग्न मास उपवासीया सुणो संताजी, शील लीये कृश अन्न गुणवंता जी ; गर्भ अनंता पामशे सुणो संताजी,
जे छ माया मन्न, गुणवंता जी। अर्थात मिथ्यात्वी मास क्षमण की तपस्या करे, फिर भी मायादि से अनंत गर्भ के दुःखों को प्राप्त हो सकता है। वैराग्य भावना से कठिन कर्म भी नष्ट हो जाते हैं। मन को वश में करने से ध्यान में सफलता मिलती है अतः मिथ्यात्वी मन को एकाग्रचित करे। आप्त पुरुषों के द्वारा प्ररुपित धर्म का अनुसरण कर अनंत मिथ्यात्वियों ने संसार रूपी समुद्र को पार किया है।
. (१) पउमचरियं १२ । २८
(२) पउमचरियं १२ । ३२,३३ (३) ध्यान विचार पृष्ठ ५२
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