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[ ३१६ ] सम्मुख होते हैं तब मिथ्यात्व यादि सोलह प्रकृतियों में जघन्यानुभाग को बांधते है।' कहा है
मिथ्यात्वाकुलितास्तीव्रविशुद्धिगतमानसाः। आरोपयन्ति मंदत्वं स्त्रीनपुंसकवेदयोः ।
-पंचसंग्रह (दि०) परिछेद ४ । ३०८ अर्थात् मिथ्यात्वी, जिनकी मानसिक विशुद्धि तीव्र हो तो वे स्त्री और नपुंसक वेद का बंध मंद रूप से करते है। सरधा आचार की चौपई में आचार्य भिक्षु
भारी करमा जीव संसार में, ते भूल्या अज्ञानी भ्रम।। त्यां ने गुणपिण मूढ मूख मिल्या, ते किण बिध पामे जिणधर्म ॥
-सरधा आचार की चौपई ढाल १४ दोहा १ अर्यात अज्ञानी व्यक्ति कुगुरु को संगति से धर्म के मर्म को नही समझ सकता है । वे मिथ्यात्वो कुगुरु की बात को मान बैठते हैं लेकिन सुगुरु की बात को नहीं मानते हैं अतः मिथ्यात्वी थोडा विवेक से काम ले। खुले दिल से सोचे । वह सुगुरु की संगति करे। नीच संगति में आत्मोद्वार नहीं होता है।
तीन प्रकार से जीव के अल्पायुष्य का बंधन होता है, यथा-हिंसा करने से, असत्य बोलने से व साधुओं को अशुद्ध अहार-पानी देने से । इसके विपरीत तीन प्रकार से दीर्घायुष्य को बांधता है-यथा अहिंसा का प्रतिपालन करने से, सत्य बोलने से व साधुओं को निर्दोष आहार-पानो देने से । अत: मिथ्यात्वी कम से कम स्थूल हिंसा से बचने का प्रयास करे, कम से कम मोटी झूठ न बोले व साधुओं
(१) पंचसंग्रह ( दि०) परिच्छेद ४ । ३०० । (२) अनादी रो जीव गोता खाय, समकित पंथ हाथ नहीं आवे । मिथ्यात मांहि कलिया, करम जोग गुरु माठा मिलिया ।
-आचार्य भिक्षु (३) भगवई व ५। उ ।। सू १२४, १२५ (४) सरषा बाचार की चौपई ढाल १५ वीं। १
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