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[ ३१५ । प्रतिपाति सम्पगदृष्टि जो सम्यक्त्व से पतित होकर पुन: मिथ्यादृष्टि हो गये है, ऐसे मिध्यादृष्टि जीव - कृष्णपाक्षिक अभवसिद्धिक जोवों से अनन्त गुणे अधिक होते हैं।
प्रशस्स-अप्रशस्त लेश्या की अपेक्षा--सबसे कम प्रशस्त लेशी मिच्याइष्टि जीव होते हैं, उनसे अप्रशस्त लेशी मिथ्यादृष्टि जीव अनन्त गुणे अधिक होते है । आचार्य पुज्यपाद ने कहा हैकृत्स्नकर्म वियोगलक्षणो मोक्षः।
-~~-तत्त्व. १ । ४ सर्वार्थसिद्धि अर्थात मोक्ष का लक्षण सम्पूर्ण कर्म-वियोग है सर्व कर्मों से मुक्ति-मोक्ष है। धाणो आदि के उपाय से तेल खल रहित होता है वैसे ही तप और संयम के द्वारा जीव का कर्म रहित होना-मोक्ष है।
मथनी आदि के उपाय से घृत छाछ रहित होता है, वैसे ही तप-संयम के द्वारा जीव का कर्म रहित होना-मोक्ष है।
अग्नि आदि के उपाय से धातु और मिट्टो अलग होते हैं वैसे ही तप और संयम के द्वारा जोव का कर्म रहित हाना-मोक्ष है।
मोक्ष सर्व पदार्थों में श्रेष्ठ हैं । मोस साध्य है और संवर-निर्जरा साधन । मोक्ष पदार्थ में सर्व गुण होते हैं। परमपद, निर्वाण, सिद्ध, शिव आदि उसके अनेक नाम हैं । मोक्ष के ये नाम गुण निष्पन्न हैं । मोक्ष से ऊँचा कोई पद नहीं है अत: वह परमपद है । कर्म रूपी दावानल शांत हो जाने से उसका नाम 'निर्वाण' है। सम्पूर्ण कृत्य कृत्य होने से उसका नाम 'सिद्ध' है। किसी प्रकार का उपद्रव नहीं है अतः मोक्ष का नाम 'शिव' है ।
बेड़ी आदि से छुटना द्रव्य मोक्ष है, कर्म बेड़ी से छुटना भाव-मोक्ष है। यहाँ मोक्ष का अभिप्राय भाव मोक्ष से है । आचार्य भिक्षु ने नव पदार्थ की चौपई में-मोक्ष पदार्थ में कहा है
परम पद उत्कृष्टो पद पामीयो, तिणस परमपद त्यारो नाम ।
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